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________________ ८ श्री जीवंधर स्वामीका संक्षिप्त जीवन चरित्र । तृतीय लम्ब। पूर्वोक्त पुरीमें ही एक श्री दत्त नामका सेठ रहता था उसे पूर्व पुरुषोंका अधिक संचित धन रहनेपर भी अपने हाथसे धन कमानेकी इच्छा हुई वह नाना प्रकारकी वस्तुओंको बेचनेके लिये नौकाओंमें माल भरकर व्यापार करनेके लिये द्वीपान्तरोंमें गया वहांसे व्यापार द्वारा धन सम्पन्न होकर नौका द्वारा लौटा लौटते समय समुद्रमें इसकी नौका बड़े भरी जलके प्रवाहसे डूबने लगी उस समय नौकामें बैठे हुए अपने साथके मनुष्यों को उसने धैर्य रखनेका उपदेश दिया पश्चात् नौकाके डूबनेके समय दैवयोगसे उसे समुद्रमें बहता हुआ एक बड़ा भारी लकड़ी का टुकड़ा दिखाई दिया यह उसको अवलम्बन करके कथमपि किनारेपर पहुंचा वहां उसने एक अपरचित आगन्तुक पुरुषसे अपना सारा वृतान्त कहा उस पुरुषने भी आश्चर्य युक्त पुरुषकी तरह इसका वृतांत सुन और फिर वृतांत सुनकर इसे किसी बहानेसे विनया पर्वतपर ले गया और वहां जाकर इस विद्याधरने अपना सारा वृतांत इससे कह सुनाया अर्थात् मैंने ही तुमको नौकाके नाशकी भ्रान्ति कराकर लकड़ीके टुकड़ेके सहारे किनारे पहुंचाया है और वहांसे फिर यहां लाया हूं ऐसे करने का मतलब यह है कि मेरे स्वामी गान्धार देशमें नित्यालोका नामकी पुरीके राजाके साथ तुम्हारी कुल परंपरासे मित्रता चली आई है और उन्होंने तुमको लानेके लिये मुझे यहां भेना है इस लिये मुझे और कोई उपाय न सूझकर इस उपायसे आपको यहां लाया हूं कृपया मेरे साथ महारानसे मिलनेके लिये चलिये ।"
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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