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________________ क्षत्रचूड़ामणिः । लिये चलते समय गुरूने यह भी कहा कि तुम सत्यंधर महारानके पुत्र हो और काष्टाङ्गारने तुम्हारे पिताको मार डाला है इस बातके सुननेसे कुमार क्रोधित होकर काष्टाङ्गारसे अपने पिताका बदला लेनेके लिये तैयार हो गया किन्तु मुनिने उसकी अल्पवयस्क अवस्था समझकर उससे एक वर्ष न लडनेकी प्रतिज्ञा कराली और वहांसे चलकर पुनः दीक्षा धारण कर मोक्षपद प्राप्त किया। उसी राजपुरी नगरीमें एक नन्दगोप नामका ग्वालियोंका स्वामी रहता था किसी दिनव्याधोंने बनमें आकर उसकी गायें रोकली निससे वह दुःखित होकर अपने साथियों को लेकर काष्टाङ्गार राजाके समीप आक्रंदन शब्दकर चिल्लाने लगा उसके आक्रंदन शब्दसे सदय काष्टाङ्गार राजाने व्याधोंको जीतनेके लिये अपनी सेना भेजी किन्तु भेजी हुई सेना हारकर वापिस चली आई तब नन्दगोपने अपने धनकी रक्षा करनेके लिये यह ढिंढोरा पिटवाया कि जो व्याधोंसे हमारी गायें छडा लावेगा मैं उसके लिये सप्त सुवर्ण पुत्रियों के साथ अपनी गोविन्दा नामकी पुत्री व्याह दूंगा यह सुनकर जीवंधर कुमार अपने मित्रों सहित बनमें गया और व्याधोंको जीतकर नन्दगोपकी गायें छुड़ालाया अपनी प्रतिज्ञानुसार नन्दगोपने अपनी कन्या प्रदान करनेके लिये जीवं. धरके लिये जलधारा छोड़ी किंतु जीवंधर कुमारने स्वयं व्याहनकर अपने प्रधान मित्र पद्मास्यके साथ उसका ब्याह करा दिया ।
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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