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________________ श्री जीकंधर स्वामीका राशि जीवन चरित्र। --08-- प्रथम लम्ब। इस जम्बूद्वीपमें भरतक्षेत्रकी रानटरी नामकी राजधानी एक सत्यंधर नामका राना रहता था उसकी विजया नामकी सर्व गुणसम्पन्न एक रानी थी इस रानी पर यह राजा इतना मोहित हो गया था कि राजाने अपना सम्पूर्ण राज्याधिकार काष्टाङ्गार नामके किसी राज्य कर्मचारीको दे दिया था उस समय मंत्रियोंने उसे बहुत समझाया पर विषयासक्त होनेके कारण राजाने किसी की एक न सुनी, फिर कुछ दिनोंके अनन्तर उस विनया रानीको गर्भ रहा उस समय रानीको रात्रिके पिछले भागमें तीन. स्वप्न दिखाई दिये उनका फल विचार कर रानाको यह निश्चय हो गया कि मैं अवश्य मारा जाऊंगा। इस लिए उसने गर्भवती रानीकी रक्षा करने के लिये आकाशमें उड़नेवाला एक मयूराकृति यन्त्र बनाया और तदनुसार वह प्रतिदिन रानीको यन्त्रमें बिठलाकर कलके द्वारा आकाशमें उड़ानेका अभ्यास कराने लगा। इधर उस सम्पूर्ण राज्यधिकारी काष्टाङ्गारको क्या दुष्टता सुझी कि इस राजाके जीवित रहते हुए मैं पराधीन सेवक कहलाता हूँ इस लिये राजाको मारकर मुझे स्वतंत्र हो जाना चाहिये फिर उसने
SR No.022644
Book TitleKshatrachudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiddhamal Maittal
PublisherNiddhamal Maittal
Publication Year1921
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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