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________________ स्वामीने तथा चंद्रप्रभस्वामी सीमंधर युगंधरने तेमज दिव्यस्फूर्तिवाळी अंबिका अने भारती= सरस्वतीनी मूर्तिओने स्थापी. आ श्रीमद् आह्लादने महाश्रेय वांछता थई श्रीवर्धमानसूरिने भक्तिवडे अभ्यर्थना करी के 'अहीं अणहिल्लनगरमा श्रीवासुपूज्य स्वामीना प्रासादनो जीर्णोद्धार आपना वचन थी स्वश्रेय माटे में कराव्यो तो आप तेमना चरित्रनी जीर्णोद्धाररूपी पुण्यघटना करो... आथी आ वासुपूज्य स्वामी- चरित आ आचार्ये विक्रम संवत् १२९९मां कयें, सकल अक्षरोनी गणना करतां ५४९४ ग्रंथाग्र-श्लोकवाळु श्रीवासुपूज्यचरित्र जय पामे छे. १७-३१ ___ आ रीते चंद्रप्रभचरित्रना कर्ता देवेन्द्रसूरी ए धनेश्वरसूरिना शिष्य थाय, ज्यारे वासुपूज्यचरितना कर्ता उक्त वर्धमानसूरि धनेश्वरसूरिना शिष्य विजयसिंह सूरिना शिष्य थाय; एटले देवेन्द्रसूरीना गुरुबन्धुना शिष्य वर्धमानसूरि छे. देवेन्द्रसूरिनी कृति सं० १२६४ नी अने वर्धमानसूरिनी सं० १२९९ नी कृति अर्थात् बे वच्चे ३५ वर्षतुं अंतर छे ते समजी शकाय तेम छे. बंने नागेंद्रगच्छनी एक ज गुरुपरंपरामां ए रीते थयेल छे. नागेंद्रगच्छना जे वर्धमानसूरिनो सं० १२६२ नो प्रतिमालेख नाहर २, नं० १९२० नो उपलब्ध छे ते आ ग्रंथकार होवानो संपूर्ण संभव छे. सेरिसा तीर्थना उत्पादक देवेन्द्रसूरि नाभिनंदनोद्धार प्रबंध उपकेश गच्छना कक्कसूरिए, कांजरोटपुरमा सं० १३९३ मां रच्यो छे तेमां सेरीसा तीर्थनी उत्पत्ति नागेंद्र गच्छना देवेन्द्रसूरिए करी एवो उल्लेख छे ते देवेन्द्रसूरि आपणा ग्रंथकर्ता होइ शके के नहि ए प्रश्न छे. जुओ नाभिनंदनोद्धार प्रबंध प्रस्ताव ४ श्लोक ३२९ थी ३३४ (मुद्रित-हेमचन्द्राचार्य ग्रन्थमाला पृ० १५४) सङ्घप्रयाणकेष्वेवं दीयमानेष्वहर्निशम् । श्रीसेरीसाऽऽह्वयस्थानं प्राप देसलसङ्घपः ॥ श्रीवामेयजिनस्तस्मिन्नूर्ध्वप्रतिमया स्थितः । धरणेन्द्रांऽशसंस्थ्यंहिः सकले [लो] यः कलावपि । यः पुरा सूत्रधारेण पटाच्छादितचक्षुषा । एकस्यामेव शर्वर्यां देवाऽऽदेशादघट्यत ।। 16 चन्द्रप्रभचरित्रम्, पूर्वप्रकाशननी प्रस्तावना ।
SR No.022638
Book TitleChandraprabh Charitram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHitvardhanvijay
PublisherKusum Amrut Trust
Publication Year1930
Total Pages380
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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