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________________ द्वितीयं परिशिष्टम् ७ मुत्ताहल न गिण्हइ रज्जुग्गहविसभक्खणराईसरिसवमित्ताणि रागंधो मोहंधो रूव पतिट्ठा माण रे विहि ! मा मा सज्जसि रोगजरामच्चुमुहालोभो सव्वविणासी वावाराण गुरुओ विज्जा अणुसरियव्वा विज्जा वि होइ बलिया विरला जाणंति गुणे विहल जो अवलंबई विहिणो वसेण कज्ज सर्णकुमारपामुक्खा सयलतियलोयपहुणो सव्वो पुवकयाण सहस च्चिय सम्ममचितिळग संझब्भरागसुरचावसीलभट्ठाण पुण सुयणा न दिति हियय सुवन्नरूप्पस्स य पब्वया भवे मुसीसा खंदा स्सावि सो को वि नरिथ सुयणो अपभ्रंश-प्राचीनगूर्जरभाषासुभाषितानि १५ अन्न चितवीइ अन्न हु३ अप्पु धूलिहिं मेलिय अंबर पवणि न पूरीइ आयह लोयह लोयणई आसातरुयर मरिउ वाज परीछी जे करइ कां किजइ कृपणह तणइ कां किजइ लहुडइ वडइ चिंता डाइणि जिहां वसइ जउ पूगी पंचास जाउ लच्छि धणकणसहिय जोउ जगविख्यात थी पीहर नरु सासरा थीयहं तिन्नि पियारडां दहइ गोसीस सिरिखं: छरछए देव आगलि न राय न राणउ धणु संचइ केई कृपण धन राउलि जीविय जमह धम्म न संचिय तव न तवीय धम्मि न वेचइ रूयडउ धर्ममरेसर भेटीइ पुण्यहीण घण दोण पूनिम विण ससि खंडिउ थाइ बग ऊडाड्या बापडा भूमीतलि भमंतेहिं माणु पट्टई जई न तणु मायावतह माणुसह मिसि विण माथामांहि राम कि मत्थई जड वहइ रे मन एक झबुक्कडउ वरि ते पंखीया भला विहि विहडावई विहि घडइ सव्वह दुक्खह उल्लीचणु' सासू दिइ जमाइहं साहण सउण न चंदबल हंसा जिहिं गय तिहिं गय हीया झूरि भ झूरि हीया मणोरह मा कर ૧૭ .. ४४
SR No.022637
Book TitleJindutta Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOmkarshreeji
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1978
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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