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________________ १०२ पृष्ठांकः सुभाषितम् अक्खाणऽसणी कम्माण अगुणमवि गुणड्ढ अच्छतु निरंतरगुरुअन्नन्नसुहसमागम अन्नं कुर्युवमेयं अपरिकिखऊण कज्ज अलसंतेहिं विहु सज्जणेहि अवलंबिया तिणा न हु अंधत्तं बभदत्तस्स आठज्जनदृकुसला आरंभस्स निवारणं सुहमणोआसन्ने रणरंगे इक पि नत्थि लोयस्स इक्को कम्माई समज्जिणेइ इय कम्मपासबद्धा उत्तमजणसंसग्गी उवएसमंतरेण वि एकस्स कए नियजीवियस्स एगदिवसं पि जीवो कह आयं ? कह चलिय! कालेण अणंतेणं कि जरिएण बहुणा को चित्तेइ मयूरे को जाणइ पुणरुतं गयसुकुमालस्स सीसम्मि गहिय जेहिं चरित गिहासमसमो धम्मो । छक्खंडवसुहसामी जइ हुज्ज मज्झ जम्मो , जह जह बंधइ नेहो जं जस्स पुनलिहियं जज दुलहं जज ज जेण कय कज्ज जाणतो वि य तरि द्वितीय परिशिष्टम् प्राकृतभाषासुभाषितानि पृष्ठांकः सुभाषितम् ११ जाणिज्ज मिच्छदिली जीय कस्स न इ8 जीवधायरओ धम्म जे कोडिसिल वामिक जे पूअंति कयत्था जो न कुणइ तुह आण जो न हु दुक्ख पत्तो तवनियमसुटियाणं ताव च्चिय होइ मुहं तित्थयरो चउनाणी तुल्ले वि उयरभरणे दाणोवभोगपरिवज्जिएण दिन्नं तस्स गणिज्जइ. दीसह विविहऽच्छरिय दु च्चिय हुति गईओ दुपय' चउषय वा देविदचक्किकेसवधणसयणबलुम्मत्तो धम्मीणं जागरिया धित्तेसिं गामनगराण धिद्धी अलद्धपुवं नयहि को न दीसइ निसाविरामे परिभावयामि निबफल किवणधण पत्ता य कामभोगा पत्ते वि य पाहुणए बहुसत्तिजुओ सुरकोडिबालस्य मायमरण भक्खणे देवदव्वस्स भुत्ता दिवा भोगा भुत्तण चक्किरिद्वि मा वहउ कोइ चिंत मा होह सुयग्गाही मियापुत्ताइजीवाण
SR No.022637
Book TitleJindutta Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOmkarshreeji
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1978
Total Pages132
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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