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________________ श्री राजेन्द्रगुणमञ्जरी । १६७ जैनाचार्य - श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरीश्वरजी महराज अत्यन्त शोभा दे रहे हैं । ६३७-६३९ ।। आदेयसूक्तिः समसौख्यदाता, भ्राता विपक्षेsपि सदाऽऽत्मना यः । कीर्तिश्चतुर्दिक्षु सुविस्तृता हि, भूपेन्द्रसूरिं तमहं स्मरामि ॥ ६४० ॥ भो ! जीवनप्रभा ग्रन्थ- मुपजीव्य विशेषतः । यथा दृष्टं श्रुतं चापि, गुरुवृत्तं गुणाद्भुतम् ॥ ६४१ ॥ तथास्यां गुणमञ्जर्यां, सुसत्यं योजितं मया । अष्टाष्टरत्नभूवर्षे, फाल्गुने सितदितिथौ || ६४२ || श्रीगोडी पार्श्वनाथस्य, द्विपञ्चाशज्जिनौकसाम् | स्वामिनो दयया शीघ्र - मेषा संपूर्णतामगात् ||६४३ || सदैव जिनके अंगीकरणीय वचन हैं, सब लोगों को सुख देनेवाले, जो अपनी आत्मासे शत्रु पर भी बन्धुत्व भाव रखने वाले, उस कारण उनकी चारों दिशाओं में अत्यन्त सुकीर्ति फैल गई है, ऐसे श्रीमद्विजयभूपेन्द्रसूरिजी महाराजको मैं बारम्वार स्मरण करता हूं । वाचकवर ! इस 'राजेन्द्रगुणमञ्जरी' में अधिकांश कर व्याख्यानवाचस्पति- मुनिश्रीयतीन्द्रविजयजी विरचित 'जीवनप्रभा ग्रन्थके तथा अन्य अनेक पुस्तकोंके अनुसार सत्य गुणोंसे युक्त जैसा देखा, सुना' वैसा वृतान्त आहोर नगर ( मारवाड़) में संवत् १९८८ फाल्गुन सुदि दशमी के
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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