SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीराजेन्द्रगुणभञ्जरी । सर्वथा श्रेष्ठवृत्तान्तै- महत्यस्मिन् कलावपि । पूर्वकालिकसूरीणा - मिहैवायमभूद्गुरुः अनेक तरहकी तपस्याओं, पवन गतिके समान अप्रतिबद्ध विहारों और प्रत्यक्ष अनुभव किये गये महोत्तम ज्ञान ध्यान मौनादि सब प्रकारके श्रष्ठ वृत्तान्तों से इस महान कलियुग में भी प्राचीन काल के आर्योंके समान ये गुरुदेव हुए ।। ६०८-६०९ ॥ ५० श्री सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय- गुरुपट्टावली १५९ ॥ ६०९ ॥ शासनेशो महावीरः, सुर्धर्मस्वाम्यभूत्ततः । जम्बूस्वामी तु तत्पद्दे, प्रभवस्वाम्यतः परम् ||६१०|| ततः शय्यं भवस्वामी, यशोद्रोऽभवद् बुधः । पहेsभूतां च सूरी द्वौ, संभूतिविजयोऽग्रजः ॥ ६११ ॥ १ श्रीसुधर्मस्वामीजी २ श्रीजम्बूस्वामीजी ३ श्रीप्रभवस्वामीजी । ६१० । ४ श्रीशय्यं भवस्वामीजी श्री जिनशासन के अधिपति चौवीसवें तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी के बाद d ५ श्रीयशोभद्रसूरिजी ६ श्रीसंभूतिविजयजी ६११ श्रीभद्रबाहुस्वामीजी
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy