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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। १४५ राधोंको माफ करना चाहिये ॥ ५६० ॥ तब गुरुश्री बोले शिष्यो ! धर्म कर्ममें भूल होने पर मीठे वचनोंसे सावधान करना वह सारणा, कुसंगादि अयोग्य कार्य करनेसे मनाई गुरुके पहले दूसरे साधुओं को आहार का निमंत्रण करना, १६ आहारादि गुरु को न दिखा कर दूसरे साधुको दिखाना, १७ गुरुको पूछे विना स्निग्ध मधुरादि आहार दूसरों को लाकर देना, १८ अच्छा अच्छा आहार स्वयं खाकर गुरु को निरस आहार देना, १९ आसन पर बैठे हुए उत्तर देना, २० गुरुका वचन नहीं सुनना, २१ गुरु के सामने ऊंचे स्वर से या कठोर बोलना, २२ गुरु के शिक्षा देने पर तुम हमको कहने वाले कौन हो ? ऐसा कहना, २३ ग्लान आदि की वैयावृत्य करने वास्ते गुरु कहे तब तुम क्यों नहीं करते ऐसा कहना, २४ गुरुदेशना में उदास होकर बैठना, २५ गुरु कुछ कहें तब ' आपको कुछ याद नहीं ऐसा कहना, २६ गुरु की धर्मकथा का भंग करना, २७ सभा जुड़ने पर गुरु आज्ञा विना ही धर्मोपदेश देना, २८ गोचरी आगई या उसकी टाइम होगई ऐसा कह कर गुरु की सभा को विसर्जन कर देना, २९ गुरु के संथारादिसे पग लगाना, ३० गुरुके संथारा या आसन पर बैठना, ३१ गुरु से ऊंचे आसन पर बैठना, ३२ गुरु के बराबरी से ऊंचा आसन लगा कर बैठना, ३३ गुरु के सामने ऊंचे आसन बैठना या गुरु वचन को अविनय से सुनना । इस प्रकार ३३ आशातनाएँ टाल कर गुरु सेवा में रहना चाहिये । १०.
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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