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________________ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। विध संघकी शुभ चाहना से अबसरज्ञ गुरुदेवने गच्छ सुधाराकी ३५ समाचारियां बाँधीं ॥ २८१ ॥ वे सारे संघमें प्रख्यात हैं, व छप भी चुकी हैं, गुरुआज्ञामें चलनेवाले व्यक्तिओंको श्रोताओंके जाननेके लिये सभाके अन्दर स्वयं वाँचना चाहिये वे ३५ कलमें इसीके अन्तमें छपी हैं ।।२८२।। ग्रन्थवृद्धिभयादेता, मया नैवात्र गुम्फिताः । धीमतां स्वल्पसंकेतो-ऽपि नीरे तैलबिन्दुवत् ॥२८३।। सियाणाख्ये वरग्रामे, सुविधीशस्य चाऽहर्तः। कुमारपालचैत्यस्य, जीर्णोद्धारमकारयत् ॥२८४ ।। उपदेशाचतुर्विंश-त्यहल्लधुगृहाणि च । एषोऽचीकरदेतेषां, स्थापनं विधिनोत्सवैः ॥ २८५ ॥ सप्ततिसहस्रमागा-द्रप्याणां जिनमन्दिरे।। विद्याशालापि संघेन, स्थापिता बोधदायिनी॥२८६॥ २६-वालीपुरीचर्चायां गौरवो विजयः-- गुरुह्येष पुरग्रामो, विचरन्नेकदा मुदा । वालीपुर्यां समागच्छ-च्छिष्यवृन्दैः सुकोविदैः।२८७। ___ यहाँ मैंने ग्रन्थ बढ़नेके भयसे ये समाचारियाँ श्लोकोंके अन्दर नहीं गूंथीं [ रची ] लेकिन बुद्धिमानोंको यह मेरा अल्पमात्र संकेत भी जलमें तैलके बिन्दु समान सुविस्तर रूप होगा ॥२८३॥ सियाणा नामक सुन्दर ग्राममें कुमारपालका
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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