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________________ ७६ श्रीराजेन्द्रगुणमञ्जरी। किया ॥ २७६ ॥ गुणशाली गुरुमहाराजकी शुभ कृपासे श्रीआहोरमें जो जो उन्नति हुई उन सबको कहने के लिये कौन समर्थ हो सकता है ? ॥ २७७ ॥ गोडीपार्श्वबहिश्चैत्ये, द्विपञ्चाशत्सुमण्डिते । नवशत्याश्च बिम्बानां, यः साञ्जनशलाकया ॥२७८।। फाल्गुनेऽसितपञ्चम्यां, प्रतिष्ठां समचीकरत् । संघानांतत्र पञ्चाशत्-सहस्रे कापि न व्यथा ॥२७९॥ आद्य एव मरौ चाऽस्मि-नीदृशः सूद्धवोऽजनि । प्रभावो भवतामेष, लक्षं मुद्रा यदागताः ॥ २८० ॥ पुरेऽथ शिवगञ्जेऽस्मिन् , श्रीसंघहितकाम्यया । . पश्चत्रिंशत्समाचारीः, समयज्ञो बबन्ध सः॥२८१॥ सर्वसंधे प्रसिद्धाश्च, तथा मुद्रापिता अपि । श्रोतृज्ञप्त्यै स्वयं वाच्या, गोष्ठ्यांगुरुनिदेशगैः।।२८२।। . छोटे बड़े बावन जिनमंदिरोंसे सुशोभित श्रीगोड़ीपार्श्वनाथजीके जिनालयमें गुरुदेवने नव सौ जिनबिम्बोंकी फाल्गुन वदि ५ गुरुवारके रोज अञ्जनशलाका युक्त प्रतिष्ठा की। यहां पचास हजार जनसमुदाय एकत्रित होने पर भी किसीको कुछ तकलीफ नहीं पड़ी ॥ २७८ ॥ २७९ ॥ मारवाड़में ऐसा पहिला ही महोत्सव हुआ, जिसमें एक लाख रुपये मंदिरमें आए, यह कुल आपश्रीका ही प्रभाव है ।।२८०॥ बाद १९५६. का चौमासा शिवगंजमें हुआ, इसमें श्रीचतु
SR No.022634
Book TitleRajendra Gun Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabvijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1939
Total Pages240
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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