SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमारविहा-१ रशतकम्। ॥५४॥ ना नपर दम ल तैयार थाय , तेम आ चैत्यना नपरना नागमां आवेता दंम नपर कवि तेवीज उत्प्रेक्षा करे . ते चैत्यनी नपर उंचा रहेला दंमो जाणे प्रजुना चरणनी स्तुति करनारा भाविक नक्तोने माटे वर्गनी संपत्तिनुं बलात्कारे हरण करवाने उंचा बाहुस्तंन होय तेवा देखाय छे. देवलोकना जपलोग सैकमो नवे करेला तीव्रतपथी पामवा योग्य , तेवा उपनोग मनुष्यपणामां मेलववाने माटे बलात्कार करवानी जरुर . कहेवानो आशय एवो ने के, ते चैत्ये पोतानी अंदर बिराजमान एवा पार्श्वनाथ प्रनुना चरणनी स्तुति करनारा मनुष्याने माटे स्वर्गनी संपत्तिना नपत्नोगनुं बलात्कारे हरण करवा पोताना खंना उपर दंग राखी हाथ लंचा करेला . ५१ कंप्राणां वातघातैर्महदपि हरितां चक्रवालं समंता
SR No.022628
Book TitleKumarvihar Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherJain Atmanand Sabha
Publication Year1910
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy