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________________ [ १७ ] जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेट्ठिल्ले खुड्डग पयरे उड्ढं जाव जोइसस्स उवरिमतले, तिरियं जाव अन्तोमस्तखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवसमुद्देसु पन्नरस्ससु कम्मभूमिसु तीसाए कम्मभूमिसु छपन्नाए अन्तरदीवगेसु सन्निपंचेंद्रियाणं पज्जन्त्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ तं चेव बिउलमई अड्ढाईज्जेहिमंगुलेहिं अमहियत्तरं विउलतरं विसुद्धतरं वितिमिरतरागं खेत्तं जाणइ पासइ । काल उज्जुमई जहन्नेणं पलिश्रवमस्स असंखिज्जयभागं उक्कोसेरावि पलिश्रवमस्स संखिज्जभागं श्रतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ । तं चैव विमई अभहियतरागं विजलतरागं विसुद्ध - तरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ । भावश्र णं उज्जुमईते भावे जाणइ पासह, सव्वभावाणं अनंतभागं जाणइ पासइ । तं चैव विउलमई अन्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाएइ पासइ | मणपज्जवनाणं पुण जणमणपरिचिंतियत्थपागडणं । माणुसखित्तनिबद्ध गुणपच्चइयं चरितव ॥ ६५ ॥ से त्तं मणपज्जवनाणं ॥ सू० ॥ ॥ १८ ॥ से किं तं केवलनाणं ? केवलनाणं दुविहं पन्नत्तं, तंजहा - भवत्थकेवलनाणं च सिद्धकेवल २
SR No.022625
Book TitleNandisutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChotelal Yati
PublisherChotelal Yati
Publication Year
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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