SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झ - श्री ४यविभ्य ज्ञान भंडार - सिरोही पत्र-99 मुक्तिनासम् हेकरानेनम्मा देवतानामस्तके मुगूटते ही कंती किर ऐर देवतामनुगवर कहां चितसो जितएवा बंधूलि गएणानतिरन मियसुरवर सिरिसेहर किरएर इग्रास स्सिरिय श्रीवीर नम्बर एक मजप्रति कहाँसॐ श्रुतीला श्रीवीरनिर्वाण्य की वीसवर से या नमीनें त्यति॥ नमिऊसिरिवीरमयं वुसुयहीलुम्पति १ वीराउंवी समेवारिसे श्री सुधर्मास्वामीनो निर्वाएिथ्यो। तिबारे पत्र म्माली सबर से श्री स्वामी बेलाके सिद्वियाभ्या वलज्ञानी सिरिसुहम्मसामीनिवाएं तेतेोच्यालीसेंसिव रिमाली 2 तिबारे यह इम्पारवर से श्रीनरी स्वगया महज सानो घर एहव तेवीसबर्षे श्रीचा तारस वरिसेहिं मनसूरगतिय सवएं तेवीसाए सिजन नवसूरि स्वामी तेहना शिष्य श्रीजसोन ओशन रिना शिष्य के सूरिगुरु ते के वाचेतेक वे वो यततोगयोसगी ३ जसन्नद्दगुरुततो सीसोसिनवसस ‍ પ્રથમ પત્ર ु सुगुरुवा प्रक्षणकरे वारंवा स्वरनमें पयाही कुएंती पुणे२वंद एमाए उ एसरी सुगुरुतरून ऊन् तिविजयने तेच्प्रग्निदत्त मुनिप्रथम देवलो संलेखनाकरी ८ म प्रवीनें ॥ के गया।।। आचार्यबीने बाऊ संयं लहसंलेहमवन्नो गर्न गतो पण्मकप्पे मला फलजाएी ने बीजाप जसोल वचनें जिन एप्राणी जगुरुना ऋतहीनानोउयायफल मुहील एक प्यायफलं फलाजाणिऊणालेवि जसन ट्रेजिएब वचनने दृढ चित्त होइ दिनदिन प्रति ज्यांगमूनिका श्रुतहीनानीउत्प यणे द७चितो हो हीपरदियहं २ प्रयवंगरलीया सुयही लुम्पति ९ ए विषै न तित्र्यमयन संपू " समाप्त ॥ J " " वर्ष कार्तिक अमावास्या भएना मातुश्री अनु अक्षयसम्मत्तं इतिश्रीवंग लिया समाप्तप्रालिखितं ॥ અંતિમ પત્ર स्तन सहति सहि भत्तिब्भरनमियसुरवर... अन्तजिणवयणे दढचितो होही पइदियहं ९ इय वंगचूलीयाइ सुयहीलुप्पत्तिअज्झयणं सम्मत्तं ॥ सम्मत्तं ॥ ॥ इति श्रीवंगचूलियासूत्रं समाप्तं ॥ - -
SR No.022624
Book TitleVargchulika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy