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________________ ज - श्री ४यविभ्य ज्ञानभंडार - सिरोही पत्र- 99 胡 तिनो समुहकरी देवतामनुष्य" परंवरक महानंदवताना मस्तके मुगटेतही कर सम्पा ऐर चिन पार्डनमः। चतिझरनमियसूरवर सिरिसेहर किर परश्य सस्सिरियं नं श्रीविरथको निर्वालयकी चिस श्री स्वामीनु सोनी तएवाश्राविरना चरण जफत हिलनानी कलमक हिस उत्पत्ती वरसे मनु सिरिचिरण्यं बुबंसयलिप्पति १ वीरानची समेत रिसे सिरिदम्म: निर्वाथ्यु. तिवारी चालीसवर सेसी ही पाम्या श्रीस्वामी म तिवारी गारेवर से बहला केवलज्ञानी सामीनियां तो यालीसेसीको अवरीमनाली २ तनुश्कार सवरि श्रीदरी स्वगिया माहाजनो घर एह बावीस श्रीस प्रवश्वरी स्वामा छ। तेविसाए सिद्धांनो योगयोगी मन जसो विहार करता राप्रथवान विषे सेहे पत्रसूरी गति तहनासम्म जो रात के हवा बाधे जसदगुरुतातो सीसो सिजं तच ससमयन् विहरतोजतो सावचिक પ્રથમ પત્ર पद्ध लोक कहा तकली उपरोऽहोतो उ गतिक जाद शलषी तसालः तादालपीतमया मन्चा ममदोसो उन संवत १८वरणे भाव 5 वारसनो रुपमा माना जान चो गण नदीयते ॥ ॥ संवत् १८०३ नावर मावद बारसनोनो संघ एमपत्रांमी वीजेजी स त्याच पाय रजे एक मुंजे बाजे लपताकि त्रिदिजाग तलसीषपायर जेएडभुं निमबजिगल पीक सं וי -.... 35 અંતિમ પત્ર स्तजड सहित आहि नमः ॥ भत्तिब्भरनमियસ્તબક આદિ सुरवर... अन्त जिणवयणे दढचितो होहा पइदियहं ९ इय वंगचूलीयाए सूयहिलुपति अज्झयणसमत्तं ॥ श्लोक || जादृष्टा लखीतं सास्त्रः तादृष्टा लखीतं मया मम शुधं अशुधं वा मम दोसो न दीयते ॥ ९ ॥ संवत् १८८३ना वरर्षे मा वद ६ वारसनोनो संपूर्णः पं. श्री प अमीवीजेजी तत्सीष पायरजेणउ नेमीवीजे लपीकृतंः ॥
SR No.022624
Book TitleVargchulika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_anykaalin
File Size7 MB
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