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________________ आने वाले जैनेतरदर्शनों के सिद्धान्तों का अभ्यास जब तक अच्छी तरह न किया हो तब तक जैनदर्शनशास्त्रों का रहस्य हस्तगत होना कठीन है। पूज्य युरुदेव श्री नयविनय महाराज भी समझते थे कि यदि जसविजय को जैनेतरदर्शनों का अच्छा अध्ययन कराया जाय तो जैनदर्शन के सिद्धान्तों का सम्यक् ज्ञान भी होगा। दूसरी ओर जसविजय की प्रतिभा से चमत्कृत होकर अहमदाबाद में एक धनजो सूरा नामक श्रेष्ठी ने गुरुदेव श्री नयविजय महाराज को आग्रहपूर्ण विज्ञप्ति की कि 'आप जसविजय को काशी में ले जाइए और सभी दर्शनों का अध्ययन करने में पढ़ाने वाले भट्टारक आचार्य को जो दक्षिणा देनी होगो वह सब मैं समर्पित करुंगा।' श्री नयविजय महाराज ने भी निश्चय कर लिया और गुजरात में से उग्र विहार करके गुरु-शिष्य के युगल ने काशी को पावन किया । वहाँ सातसो विद्यार्थीओं को पढ़ानेवाले भट्टारक के पास जसविजय भी पढ़ने लगे और भट्टारकजी भी उनकी प्रतिभा देखकर दांतों तले अंगुली दबाने लगे। विद्यार्थीयों में सब से आगे थे जसविजय । असीम गुरुकृपा का वह फल था । मात्र तीन वर्ष में तो जसविमय महाराज ने न्याय-वैशेषिकमीमांसक आदि दर्शनों के कठिन ग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन कर लिया । ___ जसविजय महाराज अध्ययन में मग्न थे उस समय काशी में एक महावादी संन्यासी ने वाद के लिये काशी के पण्डितों को आह्वान दिया । वाद में बड़े बड़े पण्डित हार गये । तब भट्टारक को नजर जसविजय पर स्थिर हुई । जसविजय महाराज ने वादसभा में अनेक पण्डितों की उपस्थिति में गुरुकृपा के अनन्य प्रभाव से स्याद्वाद की अकाट्य युक्ति द्वारा उस संन्यासी को वाद में पसजित कर दिया । स्याद्वाद दर्शन की जयपताका को काशी के गगनांगण में लहराना आसान तो नहीं था, सभी पण्डित आश्चर्यमग्न बन गये और बहुत सम्मानपूर्वक जसविजय महाराज को न्यायविशारद की उपाधि से विभूषित बना दिये ।। तदनन्तर श्रीमद् नयविजयमहाराज और न्यायविशारदजी विहार करके आग्रा में आये। वहाँ भी एक विद्वान भट्टारक के पास चार वर्ष तक श्री मसविजय महाराज ने जैनेतरदर्शनों का हो अभ्यास किया । इस समय में श्री जसविजय महाराज ने अनेक नवीन ग्रन्थों की रचना को होगी जिसको देखकर भट्टारक श्री ने जसविजय को न्यायाचार्य पद भी समर्पित किया । जैनेतर दार्शनिकों में उदयमाचार्य के बाद यह गौरवपूर्ण पद किसी दूसरे को दिया गया हो ऐसा सुना नहीं है । उपाध्यायजी इन दोनों पदवी का स्वयं उल्लेख इस तरह करते हैं
SR No.022623
Book TitleSyadvad Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay Mahopadhyay
PublisherBharatiya Prachyatattv Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages182
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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