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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन आर संस्कृति का बृहत्कथा अग्गिभूइ-वाउभूइपुव्वभवसंबंधो (८६.१२); राहुगबलामूककहासंबंधो (८६.२१); अंधगवण्हिपुव्वभवसंबंधो (११२.२४); इब्भदारयदुगकहासंबंधो (११६.१८); महाबल - सयंबुद्धपुव्वजाणं कहासंबंधो (१६९.१५); सगरसंबंधो (१८५.२४), नारय-पव्वयग- वसूणं संबंधो (१८९.२७); पउमसिरसंबंधो (२३०.२६), पउमसिरिपुव्वभवसंबंधो (२३२.८), सणकुमारचक्कवट्टिसंबंधो (२३३.१५), सुभोमचक्कवट्टिसंबंधो (२५१.१४); जमदग्गिपरसुरामाइसंबंधो ( २३५.२०); विज्जुदाढविज्जाहरसंबंधो ( २५१.२४), संजयंतजयंताणं संबंधो (२५२.२१), विज्जुदाढसंजयंताणं पुव्वभविओ वेरसबंधो (२५३.७), मिगद्धय- भद्दगाणं पुव्वभबसंबंधो तत्थ तिविट्टु-आसग्गीवाणं संबंधो (२७५.९), गंगरक्खि असंबंधो (२८९.१०); कामपडागासंबंधी (२९३.९); सामिदत्तसंबंधो (२९४.१३), इसिदत्ताएणियपुत्ताणं कहासंबंधी (२९७.२३), पियंगुसुंदरीपुव्वभवसंबंधो (३०६.१ ); संतिजिणपुव्वभवकहाए अमियतेयभवो सिरिविजयाईणं संबंधो य ( ३१३.२३), इंदुसेण - बिंदुसे -- संबंध (३२१. १); मणिकुंडलीविज्जाहरसंबंधो (३२१.१३); सुमतिरायकण्णासंबंधो (३२७.१५); संतिमतीए अजियसेणस्स य संबंधो तप्पुव्वभवो य (३३०.२२) और इंदसेणासंबंधी (३४८.१६) । ५२८ इस प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' में सम्बन्ध-संज्ञक कथाओं की विविधता और बहुलता उपलब्ध होती हैं। ये 'सम्बन्ध' - संज्ञक कथाएँ कथा और विकथा, अर्थात् धर्मकथा एवं कामकथा, अर्थकथा तथा मिश्रकथा के रूपों में वर्गीकृत की जा सकती हैं। 'सम्बन्ध' या 'कथासम्बन्ध' - संज्ञक ये सभी कथाएँ अपने नाम की अन्वर्थता के अनुसार कहीं कथा के पूर्वापर-सम्बन्ध को जोड़ने के लिए प्रस्तुत की गई हैं, तो कहीं मूलकथा के प्रसंग में, कथा- विस्तार के निमित्त, विनियोजित हुई हैं। कुल मिलाकर, इन सभी 'सम्बन्ध' संज्ञा से संवलित कथाओं का संगुम्फन विभिन्न कथा - पात्रों और पात्रियों के पूर्वभव और परभव के परस्पर सम्बन्ध और उनके कार्यों की विचित्रता के प्रदर्शन के लिए किया गया है । संघदासगणी ने 'दृष्टान्त' - संज्ञक कथाओं का विन्यास भी अपनी बृहत्कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' में किया है। यथाविन्यस्त दृष्टान्त-कथाएँ संख्या की दृष्टि से कुल दो ही हैं : 'विसयसुहोवमाए महुबिंदुदिट्ठतं' (८.३) तथा 'दुक्खे - सुहकप्पणाए विलुत्तभंडस्स वाणियगस्स दिट्ठतं ' (१५.१६) । 'दृष्टान्त' की शाब्दिक व्याख्या के अनुसार, परिणाम को प्रदर्शित करेवाली कथाएँ ही 'दृष्टान्त' (जिसका अन्त या परिणाम देखा गया हो : दृष्टः अन्तो यस्याः सा दृष्टान्तकथा) की संज्ञा प्राप्त करती हैं। मूलतः इस प्रकार की कथाएँ नीतिकथाएँ हुआ करती हैं। विषय-सुख में लिप्त मनुष्य विषय के तादात्विक सुख की अनुभूति में ही अपने जीवन की सार्थकता का अनुभव करता है, उसके भावी दुःखमय परिणाम का ज्ञान उसे कभी नहीं रहता है । संसारी मनुष्य भय-संकट की स्थिति में भी अपने को अज्ञानतावश निर्भय समझता है, वस्तुतः उसका सुख केवल एक प्रकार की कल्पना ही होता है । कथाकार द्वारा उपन्यस्त मधुबिन्दु का दृष्टान्त श्रमण और ब्राह्मण-परम्परा के परवर्ती ग्रन्थकारों द्वारा बहुश: आवृत्त हुआ है। कथा है कि अनेक देशों और नगरों में विचरण करनेवाला कोई पुरुष एक व्यापारी के साथ जंगल में जा पहुँचा। व्यापारी को चोरों ने मार डाला। व्यापारी से बिछड़ा हुआ वह पुरुष दिशा भूलकर भटकने लगा । इसी समय उसे एक मतवाले हाथी ने खदेड़ा। भागते हुए उस पुरुष को घास-फूस से ढका एक पुराना कुआँ दिखाई पड़ा । कुएँ की जगत पर बहुत पड़ा बरगद का पेड़ जम गया था और उसका बरोह कुएँ के भीतर लटक रहा था। भयाक्रान्त वह पुरुष कुएँ में, बरोह
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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