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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४६९ करता था। डॉ. मोतीचन्द्र ने विजया नदी की आनुमानिक पहचान मध्य एशिया की सीरदरिया से की है। १ 1 कथाकार ने विद्याधर- क्षेत्र में बहनेवाली एक अद्भुत नदी वरुणोदिका का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि राजगृह से यात्रा करते हुए वसुदेव अपनी विद्याधरी पत्नी वेगवती के साथ वरुणोदिका नदी के निकटवर्त्ती आश्रम में गये। आश्रम के पास उस नदी में पाँच नदियों का संगम होता था । वसुदेव वरुणोदिका नदी के सैकत तट पर उतरे और सपत्नीक उन्होंने पाँचों नदियों की धाराओं में पैठकर स्नान किया फिर वे दोनों सिद्धों को प्रणाम कर बाहर आये । वहाँ उन दोनों ने मिलकर स्वादिष्ठ फल का भक्षण किया, पुनः जल का पान और आचमन किया। ऋषि के सान्निध्य में रात बिताकर प्रातः सूर्योदय होने पर वे दोनों आश्रम से निकल पड़े और वहाँ से चलकर पुनः वरुणोदिका नदी के तट पर पहुँचे। उस नदी का जल अतिशय निर्मल था । उसका पुलिन बड़ा रमणीय था। नदी की सीमा पर एक पर्वत था, जो विविध धातुओं के अंगराग से अनुरंजित था । उसके शिखर आकाश छू रहे और उसकी तलहटी को वरुणोदिका नदी अपने जल से पखार रही थी ( वेगवतीलम्भ: पृ. २५० ) । इस प्रकार उस युग की पाँच नदियों के संगमवाली यह नदी अवश्य ही महत्त्वपूर्ण रही होगी। आज इस नदी की पहचान के लिए भूगोलविदों की शोध - सूक्ष्मेक्षिका की प्रगति प्रतीक्षित है। २ कथाकार द्वारा निर्दिष्ट हृदरूप शंखनदी के तट पर रत्नों का व्यापार होता था । कथा है कि जम्बूद्वीप के ऐरवत - क्षेत्र के पद्मिनीखेट के निवासी सागरदत्त वणिक् के पुत्र धन और नन्दन नागपुर की शंखनदी के तट पर व्यापार करते थे। एक दिन दोनों शंखनदी के तट पर रत्न के लिए झगड़ने लगे और झगड़ने के क्रम में हद में जा गिरे (केतुमतीलम्भ: पृ. ३३८ ) । अनुमानतः यह नदी -हद दक्षिण भारत का कोई प्रसिद्ध व्यापार क्षेत्र था । संघदासगणी ने चक्रवर्त्ती भरत के दिग्विजय-प्रसंग में सिन्धुनदी (सोमश्री लम्भ : पृ. १८६ ) का उल्लेख किया है, साथ ही चारुदत्त की कथा में सिन्धु- सागर-संगम (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४८) का भी निर्देश किया है । चारुदत्त ने अपनी मध्य-एशिया की यात्रा सिन्धु-सागर-संगम, यानी प्राचीन बर्बर के बन्दरगाह से शुरू की थी । ३ जैनागम 'स्थानांग' (५. २३१) के अनुसार, सिन्धु, जम्बूद्वीप के मन्दरपर्वत के दक्षिण भाग (भरत - क्षेत्र) में बहनेवाली महानदी है। इसमें पाँच महानदियाँ मिलती हैं: शतद्रु (सतलज), वितस्ता (झेलम), विपासा (व्यास), ऐरावती (रावी) और चन्द्रभागा ( चिनाब ) । सिन्धुनदी से ही भारत की सिन्धु सभ्यता की स्वतन्त्र पहचान स्थापित हुई है । पुरातत्त्वज्ञों की यह मान्यता सुविदित है कि पाँच-छह सहस्र वर्ष पूर्व सिन्धु घाटी में एक अत्यन्त समुन्नत सभ्यता विकसित हुई थी । यह सभ्यता दक्षिण में काठियावाड़ और पश्चिम में मकरान से हिमालय तक विस्तृत थी । कथाकार द्वारा निर्दिष्ट सुवर्णकूला नदी भी आगमिकं है । 'स्थानांग' (६.९०) के अनुसार, यह जम्बूद्वीप के १. द्र. 'सार्थवाह' (वही) : पृ. १३३ । २. प्रसिद्ध पुरातत्त्वेतिहासज्ञ डॉ. योगेन्द्र मिश्र ने श्वेतपुर ( चेचर : उत्तर बिहार का ग्रामसमूह) के अनुसन्धान के क्रम में वहाँ पाँच धाराओं के संगमवाली नदी (पंचनदीसंगम) की अवस्थिति का उल्लेख किया है। (द्र. 'श्वेतपुर की खोज और उसका इतिहास; प्र. वैशाली भवन, टिकियाटोली, पटना) । श्वेतपुर के परिचय के क्रम में 'वसुदेवहिण्डी' का यह सन्दर्भ विचारणीय है । ले. ३.द्र. 'सार्थवाह' (वही) : पृ. १३३
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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