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________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा कथाकार ने गोदावरी नदी का भी उल्लेख किया है (भद्रमित्रा - सत्यरक्षितालम्भ : पृ. ३५३-५४)। भारत के दक्षिण में बहनेवाली यह नदी भूगोलविदों के लिए बहुपरिचित है तथा भारतीय प्राचीन- अर्वाचीन साहित्य में बहुवर्णित भी । कथाकार ने चम्पानगरी के निकट बहनेवाली एक नदी चन्दा की चर्चा की है (धम्मिल्लचरित : पृ. ५८ ) । इस नदी में कमलवन भी था । नदी में कमलवन की स्थिति की चर्चा कविप्रसिद्धि के अनुरूप है, वास्तविक नहीं । सम्भव है, यह कोई झील रही हो । भागलपुर के आधुनिक 'चम्पानाला' से इसकी पहचान सम्भव है । ४६८ कथाकार ने मथुरा के पास बहनेवाली भूगोलप्रसिद्ध यमुना का वर्णन अपने ग्रन्थ में किया है, जिसे 'स्थानांग' ने गंगा महानदी में मिलनेवाली पाँच महानदियों (यमुना, सरयू, आवी, कोशी और मही) में परिगणित किया है। मथुरा के राजा उग्रसेन ने अपने सद्योजात पुत्र कंस को कुलविनाशक मानकर उसे काँसे की पिटारी में रखकर यमुना में प्रवाहित कर दिया था (देवकीलम्भ: पृ. ३६८) । इसी प्रकार, मथुरानगरी की प्रसिद्ध गणिका कुबेरसेना की नवजात यमज सन्तानको जन्म के दिन से दस रात बीतने के बाद गणिका-माता ने, सोने और रत्न से भरी छोटी नाव में रखकर यमुना नदी में प्रवाहित करवा दिया था ( कथोत्पत्ति : पृ. ११) । कथाकार ने गंगा-यमुना के संगम का भी निर्देश किया है। हिंसावादी ब्राह्मण पर्वतक और शाण्डिल्य ने मिलकर राजा सागर से प्रयाग और प्रतिष्ठान (झूसी) के बीच यज्ञवेदी बनवाकर पशुयज्ञ करवाया था । फिर, राजा सगर को जब पशुहिंसामूलक राजसूय यज्ञ में दीक्षित किया गया, तब हिंसा-विरोधी नारद के कथनानुसार, राजपुत्र दिवाकरदेव ने गंगा-यमुना-संगमक्षेत्र की गंगा में यज्ञ-सामग्री फेंक थी (सोमीलम्भ: पृ. १९२) । इस कथा से स्पष्ट है कि गंगा-यमुना की संगमभूमि पर उस युग में भी यज्ञ- याजन, पूजा-पाठ आदि धार्मिक कृत्य निरन्तर होते रहते थे । कथाकार ने भारतवर्ष में बहनेवाली यावकी नदी का निर्देश किया है। उसके तट पर अनेक ऋषियों के आश्रम थे । वहाँ एकशृंग नामक तपस्वी रहते थे, जिन्होंने नटजाति की स्त्री स्कन्दमणि से विवाह किया था (बालचन्द्रालम्भ: पृ. २६१) । इसी प्रकार, कथाकार ने अष्टापद पर्वत की तराई में बहनेवाली निकटी नदी का उल्लेख किया है। इस नदी के तट पर भी अनेक तापसों के आश्रम थे (केतुमतीलम्भ: पृ. ३३८) । चम्पानगरी (अंगदेश) के निकट बहनेवाली कनकबालुका की भाँति रजतबालुका नदी का निर्देश कथाकार ने किया है। इसके वर्णन में लिखा गया है कि इस नदी का तट वृक्षों और लताओं के कुंजों से आकीर्ण था, इसका पानी बहुत स्वच्छ था। इसकी बालू चिकनी और उजली थी (पृ. १३४) । नाम के अनुसार, अनुमानतः इस नदी की बालू में रजतकण उपलब्ध रहते होंगे । कथाकार ने विदर्भ- जनपद के राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर के पास बहनेवाली वरदा नदी का निर्देश किया है । इस नदी के तट पर नागगृह प्रतिष्ठित था, जहाँ कृष्ण के संकेतानुसार रुक्मिणी पूजा के लिए आई थी और कृष्ण ने वहीं से उसका हरण कर लिया था । रुक्मिणी के स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए आया हुआ शिशुपाल वरदा नदी के पूर्वी तट पर ठहरा था (पीठिका: पृ. ८०-८१) । कथाकार द्वारा निर्दिष्ट विजया नामक नदीह्रद वैताढ्य पर्वत की तराई में अवस्थित था । कुपथ को पार करने के मार्ग में यह अथाह हद स्थल- व्यापारियों के लिए भीषण समस्या उत्पन्न
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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