SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 478
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५८ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा के वर्णन क्रम में कथाकार ने कई विजयों (प्रदेशों) का भी उल्लेख किया है। जैसे : नलिनीविजय, मंगलावतीविजय, रमणीयविजय, वत्सावतीविजय, सलिलावतीविजय और सुकच्छविजय । उपर्युक्त द्वीपों, क्षेत्रों और विजयों के विशद भौगोलिक विवरण आगमों में उपलब्ध होते हैं । इन प्राचीन भौगोलिक स्थानों की आधुनिक भूगोल की दृष्टि से पहचान बहुत ही स्वल्प मात्रा में सम्भव हो पाई है । यद्यपि इनकी पहचान की मौलिक और मनोरंजक विशेषता प्राचीन भूगोल की मिथकीय सीमा में ही अधिक आस्वाद्य और प्रीतिकर प्रतीत होती है। कथाकार द्वारा उल्लिखित कण्ठकद्वीप (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १५०) विद्याधरों के साम्राज्य का कोई विशिष्ट द्वीप था। इस द्वीप में कर्कोटक नाम का पर्वत था । विद्याधर प्राय: तप के लिए इस पर्वत का आश्रय लेते थे । अमितगति विद्याधर सूत्रों का ज्ञान प्राप्त कर कण्ठकद्वीप में स्थित कर्कोटक पर्वत पर दिन में आतापना लेता था और रात्रि में उस पर्वत की गुफा में रहता था । कथाकार द्वारा केवल नामतः वर्णित किंजल्पद्वीप (प्रियंगुसुन्दरीलम्भ: पृ. २९६) में किंजल्पी नामक पक्षियों का निवास था । वे पक्षी बड़ी मीठी आवाज करते थे। इस द्वीप की भौगोलिक स्थिति का संकेत कथाकार ने नहीं किया है। कथाकार के निर्देशानुसार, सुवर्णार्थी चारुदत्त समुद्रयात्रा के क्रम में पूर्वदक्षिण के पत्तनों का हिण्डन करने के बाद यवनद्वीप पहुँचा था (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १४६ ) । यह प्राचीन यवनद्वीप ही यवद्वीप था, आज जिसकी पहचान जावा से की जाती है। डॉ. मोतीचन्द्र ने लिखा है कि दक्षिण द्वीपान्तर के सीधे रास्ते पर यात्री निकोबार, नियास, सिबिरु, नसाऊद्वीप और इबाडियु (यवद्वीप) पहुँचते थे। यवद्वीप में काफी सोना मिलता था और जिसकी राजधानी का नाम आरगायर था । ' 'वसुदेवहिण्डी' के आगमविद् लेखक ने प्राकृत-कथासाहित्य में सातिशय चर्चित आगमोक्त जम्बूद्वीप का व्यापक वर्णन किया है। आप्टे महोदय के अनुसार, जम्बूखण्ड या जम्बूद्वीप मेरुपर्वत के चारों ओर फैले हुए सात द्वीपों में एक है । ब्राह्मणपुराणों के अनुसार यह द्वीप धरती के सात महाद्वीपों या प्रधान विभागों में एक है, जिसके नौ खण्डों में एक भारतवर्ष भी है। पुराणों में जम्बूनदी का भी उल्लेख हुआ है, जो जम्बूद्वीप के नामकरण के हेतुभूत, जामुन के पेड़ से चूनेवाले जामुनों के रस से नदी बनकर प्रवाहित होती है। इसे ब्रह्मलोक से निकली हुई सात नदियों में एक माना गया है । 'वाल्मीकिरामायण' में जम्बूप्रस्थ नाम से एक नगर का भी वर्णन आया है, जो ननिहाल से लौटते समय भरत के रास्ते में पड़ा था ( अयोध्याकाण्ड : ७१.११) । जैनों के छठे उपांग 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' (प्रा. 'जम्बूदीवपण्णत्ति) के पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध दोनों विभागों में, भरत क्षेत्र तथा उसके पर्वतों, नदियों आदि के साथ ही उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल-विभागों एवं कुलकरों, तीर्थंकरों एवं चक्रवर्ती राजाओं आदि का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। प्राचीन भारतीय भूगोल के अध्ययन की दृष्टि से 'जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति' का ततोऽधिक महत्त्व है। इस ग्रन्थ से संघदासगणीवर्णित द्वीपों का समर्थन प्राप्त होता है । 'स्थानांग' में प्राप्य जम्बूद्वीप का वर्णन नैबन्धिक महत्त्व रखता है। ऊपर 'वसुदेवहिण्डी' में वर्णित जितने क्षेत्रों का नामोल्लेख हुआ है, सभी जम्बूद्वीप के ही क्षेत्र हैं। 'स्थानांग' (२.२६८-२७२) मन्दर पर्वत को जम्बूद्वीप के मानदण्ड के रूप में स्वीकार किया गया है। जैसे : जम्बूद्वीप में १. द्र. 'सार्थवाह' (वही) : पृ. १२५
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy