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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन ४५७ संघदासगणी इतिहासकार नहीं, अपितु कथाकार थे । इसलिए, उन्होंने ऐतिह्यमूलक तथ्यों बहुरंगी कल्पनाओं से कमनीय बनाकर उपस्थापित किया है। प्राकृत-कथाकारों की विशेष दृष्टि यह रही है कि वे मनुष्य को अनादि काल से प्रवर्त्तित कर्म - परम्परा या 'यथानियुक्तोऽस्मि तथा करोमि की समर्पित भावना का वंशवद नहीं मानते, अपितु उसे आत्मनिर्माता और आत्मनेता समझते थे । इसीलिए प्राकृत-कथाओं में केवल स्थापत्य की ही नवीनता नहीं है, वरन् उनके विचार, वस्तु और भावनाएँ भी नवीन हैं। 'वसुदेवहिण्डी' की कथाओं में ऐतिह्य का आभास एक विशिष्ट स्थापत्य बन गया है। इसलिए इस कथाग्रन्थ में इतिहास के कई ऐसे सूत्र मिलते हैं, जो मनोरम कथाओं के साथ प्रामाणिक इतिहास के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं । संघदासगणी ने ऐतिहासिक साक्ष्य के परिप्रेक्ष्य में अपनी कल्पना की समीचीन विनियुक्ति करके कथाओं में आप्तत्व या प्रामाण्य की प्रतिष्ठा की है, और इस प्रकार इतिहास के आवरण में उपन्यस्त 'वसुदेवहिण्डी' की चरितकथाएँ अर्द्ध- ऐतिहासिक बन गई हैं। संघदासगणी स्वयं वीतराग कथाकार और प्रामाणिक वक्ता हैं इसलिए उनकी कथा में स्वयं ही आप्तत्व आहित है और फिर कथा के श्रोता और वक्ता के रूप में सम्राट् श्रेणिक और तीर्थंकर महावीर की साक्षिता स्थापित हो जाने से उसकी ऐतिहासिकता ततोऽधिक विश्वसनीय हो गई है। 1 भौगोलिक और राजनीतिक तत्त्वों से अनुप्राणित 'वसुदेवहिण्डी' की ऐतिहासिक साक्ष्यमूलक कथाओं का अपना विशिष्ट मूल्य है, और इसीलिए ये कथाएँ इतिहासाधृत भौगोलिक और राजनीतिक तत्त्वों से सहज ही जुड़ी हुई हैं। इतिहास और राजनीति का मानव समाज और संस्कृति से गहरा सम्बन्ध है, इसलिए सामाजिक एवं सांस्कृतिक विषय के विशिष्ट अंगभूत भूगोल का अनुशीलन भी इस सन्दर्भ में अपेक्षित हो जाता है । यही कारण है कि प्राचीन मानवशास्त्रियों ने मानव-जाति या मानव-समाज के विकास के लिए भौगोलिक वातावरण के प्रभावों को स्वीकार किया है । 'वसुदेवहिण्डी' के सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से भौगोलिक सीमा और राजनीतिक मर्यादा के निर्धारण और विश्लेषण के माध्यम द्वारा ही ऐतिहासिक मूल्यविषयक तत्तत्स्थानीय तत्कालीन राष्ट्रवादी सांस्कृतिक चेतना का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए, यहाँ भौगोलिक एवं राजनीतिक महत्त्व से संवलित ऐतिहासिक तत्त्वों का दिग्दर्शन अपेक्षित होगा । द्वीप : संघदासगणी द्वारा संकेतित द्वीप, क्षेत्र, पर्वत, नदियाँ आदि तत्कालीन भौगोलिक तत्त्वों को उद्भावित करते हैं, तो देश, जनपद, नगर, ग्राम, सन्निवेश आदि के वर्णन से तत्सामयिक राष्ट्रमूलक राजनीतिक स्थितियाँ उजागर होती हैं । कथाकार ने अपनी इस महत्कथा में आगम-ग्रन्थ के आधार पर अनेक भौगोलिक स्थलों का वर्णन किया है । यथावर्णित द्वीपों के नाम इस प्रकार हैं: कण्ठकद्वीप, किंजल्पिद्वीप, यवनद्वीप, जम्बूद्वीप, धात्री या धातकीखण्डद्वीप, नन्दीश्वरद्वीप, पुष्पकरवरद्वीप, रत्नद्वीप, रुचकद्वीप, लंकाद्वीप, सुवर्णद्वीप और संहलद्वीप । इन द्वीपों में अनेक क्षेत्रों या अन्तद्वीपों की स्थिति की चर्चा की गई है, जिनके नाम इस प्रकार हैं : अर्द्ध भरत, अपरविदेह, उत्तरकुरु, उत्तरार्द्धभरत, ऐरवत, दक्षिणार्द्धभरत, दक्षिणभरत, देवकुरु, पुष्करार्द्ध, पूर्वविदेह, भारत, भारतवर्ष, महाविदेह, विजयार्द्ध, विदेह और हरिवर्ष । द्वीपों और क्षेत्रों
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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