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________________ वसुदेवहिण्डी में प्रतिबिम्बित लोकजीवन सामान्य वनस्पतियों के अतिरिक्त शाल, सहकार, तिलक, कुरबक, चम्पक, अशोक, (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १५५); कमल, कुमुद, कुन्द (तत्रैव : पृ. १५९), पुन्नाग, पनस, नालिकेर, पारापत, भव्यगज, नमेरुक (वेगवतीलम्भ: पृ. २५०); सप्तपर्ण, तिन्दूसक (बालचन्द्रालम्भ : पृ. २६९), बिल्व ( प्रियंगुसुन्दरी लम्भ: पृ. २९८), शल्लकी (गन्धर्वदत्तालम्भ: पृ. १३८), अक्षोट (अखरोट, प्रियाल, कोल (बेर), तिन्दुक, इंगुद, कंसार, नीवार (केतुमतीलम्भ: पृ. ३५३) आदि का उल्लेख तोकिय ही है, विशेष वनस्पतियों में कल्पवृक्ष, नन्दिवत्स, चित्ररस और रक्ताशोक (चैत्यवृक्ष) का भी वर्णन उपस्थित किया है । यहाँ कथाकार द्वारा कथावस्तु के विकास के लिए सन्दर्भित विशेष वनस्पतियों का विवरण - विवेचन ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण होगा । ३८३ संघदासगणी ने कल्पवृक्ष की अनेकशः चर्चा की है। भारतीय पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह कल्पवृक्ष प्रसिद्ध देवासुर - कृत समुद्र मन्थन के क्रम में उपलब्ध चौदह रत्नों में अन्यतम है । भारतीय आगम-साहित्य में चौदह रत्नों की कथा कहाँ से और कैसे आई, इसकी गवेषणा प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्त्व की उपलब्धियों के आलोक में अपेक्षित । क्योंकि, ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें सांस्कृतिक सम्बन्धों और उनके समन्वय की विशाल प्रक्रिया प्रतिबिम्बित है । कल्पवृक्ष मुख्यतया धन-वैभव और सुख-समृद्धि का ही द्योतक है। यह देव और मानव की अभीप्सित-पूर्ति का अलौकिक माध्यम है। ‘अमरकोश' में, कल्पवृक्ष के पाँच नाम आये है और इन्हें देवतरु' कहा गया है । पाँच नम इस प्रकार हैं : मन्दार, पारिजात, सन्तान, कल्पवृक्ष और हरिचन्दन। वैष्णव पुराणों में पारिजात की दुर्लभता पर एक कथा की रचना 'पारिजातहरण' के नाम से प्रसिद्ध हो गया है । यह अलभ्य कल्पवृक्ष कृष्ण की पत्नी सत्यनामा को भा गया और जब उन्होंने उसे पाने का हठ ठान ही लिया, तब अन्ततोगत्वा कृष्ण समस्त विघ्न-बाधाओं को झेलकर स्वर्ग पहुँचे और स्वर्गाधिपति इन्द्र से पारिजात को छीनकर पृथ्वी पर ले आये और उसे अपने उद्यान में प्रतिष्ठित किया। इस कथा में यह स्वर्गीय वृक्ष स्वर्ग और मर्त्य दोनों लोकों की आकांक्षाओं का सम्मिलित प्रतीक बनकर सामने आता है और इन्द्र से कृष्ण की श्रेष्ठता का भी द्योतन करता है । २ कल्पवृक्ष, कालिदास द्वारा सम्पूर्ण नारी-शृंगार ('सकलमबलामण्डनं) को सुलभ करनेवाला स्वर्गीय वृक्ष के रूप में परिकल्पित है । 'मेघदूत' में वर्णन है कि अलकापुरी में, पहनने के लिए रंग-विरंगे वस्त्र, नयनों को विविध विलास सिखानेवाली मदिरा, शरीर सजाने के लिए कोंपलों सहित खिले हुए फूलों के भाँति-भाँति के गहने, कमल की तरह कोमल पैरों को रँगने के लिए महावर आदि समस्त प्रकार की स्त्रीजनोपयोगी शृंगार - सामग्री अकेला कल्पवृक्ष ही प्रस्तुत करता है । शुंगकाल (ई.पू. प्रथम शती) के शासक अग्निमित्र के समकालीन कालिदास की इस उक्ति से यह संकेत होता है कि प्रसाधनप्रसू कल्पवृक्ष स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर लाक्षणिक रीति से ललित १. पचैते देवतरवो मन्दारः पारिजातकः । सन्तानः कल्पवृक्षश्च पुंसि वा हरिचन्दनम् ॥ अमरकोश, प्रथम काण्ड, स्वर्ग-वर्ग २. विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य : डॉ. जगदीश गुप्त का 'कामनापूर्ति का अलौकिक आधार : कल्पवृक्ष' शीर्षक लेख; 'मनोरमा' (इलाहाबाद), जनवरी (प्रथम पक्ष), सन् १९७८ ई, पृ. २३-२४ ३. एकः सूते सकलमबलामण्डनं कल्पवृक्षः । - 'मेघदूत' : उत्तरमेघ
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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