SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी की पारम्परिक विद्याएँ १९१ इस प्रकार, संघदासगणी ने 'वसुदेवहिण्डी' में, अधिकांशत: जैनागमों के आधार पर, ज्योतिष-विद्या के तत्त्वों का बड़ा व्यापक उपस्थापन किया है। कथारस का विघात किये विना ज्योतिष के निगूढ़ पक्षों का गम्भीर विवेचन संघदासगणी जैसे रससिद्ध कथाकार से ही सम्भव था। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि संघदासगणी ने ज्योतिष के जितने तत्त्व अभिज्ञापित किये हैं, वे सूत्रात्मक हैं। इस सन्दर्भ में, यह उल्लेखनीय है कि एक कथाकार विशुद्ध कथाकार की भूमिका में ही रहता है, इसलिए ज्योतिष के आचार्यत्व को प्रदर्शित करने की गुंजायश वह कथा के माध्यम से ही निकाल सकता है। स्वप्नफल, भविष्यवाणी, सामुद्रिकशास्त्र के अंगलक्षण आदि ऐसे ज्योतिष्क आयाम हैं, जो प्राचीन कथा के लौकिकातिलौकिक पात्रों के व्यक्तित्व-उद्भावन या महत्कथा के आवश्यक विस्तारीकरण में बड़े सहायक हैं, इसीलिए संघदासगणी ने अपनी कथावस्तु में इन तत्त्वों का जितना अधिक समावेश किया है, उतना ग्रह, नक्षत्र, योग, करण आदि के सैद्धान्तिक पक्ष का नहीं। संघदासगणी केवल इतना ही प्रदर्शित करना चाहते हैं कि खगोल और भूगोल के बीच में रहनेवाला मानव-जगत् अन्तरिक्ष के ज्योतिष्क ग्रहतत्त्व और पृथ्वी के शकुनशास्त्रीय प्राकृतिक तत्त्वों के साथ अविच्छिन्न भाव से जुड़ा हुआ है, इसलिए उसे ज्योतिष-तत्त्वों से अलग रखकर देखा जाना सम्भव नहीं है। संघदासगणी के इस सूत्र को आचार्य वराहमिहिर के सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया जाय, तो स्पष्ट ज्ञात होगा कि मानव का शरीरचक्र ही ग्रहकक्षा-वृत्त है। इस कक्षावृत्त के बारह भाग-मस्तक, मुख, वक्षःस्थल, हृदय, उदर, कटि, वस्ति, लिंग, जाँघ, घुटना, पिंडली, और पैर क्रमश: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन ये बारह राशियाँ हैं। इन बारह राशियों में भ्रमण करनेवाले ग्रहों में आत्मा रवि, मन चन्द्रमा, धैर्य मंगल, वाणी बुध, विवेक गुरु, वीर्य शुक्र और संवेदन शनि है। इस प्रकार, आचार्य वराहमिहिर ने सात ग्रह और बारह राशियों की स्थिति देहधारी प्राणी के भीतर ही बताई है। शरीर-स्थित इस सौरचक्र का भ्रमण आकाश-स्थित सौरमण्डल के नियमों के आधार पर ही होता है। ज्योतिषशास्त्र व्यक्त सौरजगत् के ग्रहों की गति, स्थिति आदि के अनुसार ही अव्यक्त शरीर-स्थित ग्रहों की गति, स्थिति आदि को प्रकट करता है। इसीलिए इस शास्त्र द्वारा निरूपित फलों का मानव-जीवन से अटूट सम्बन्ध है। ___ यही रहस्य है कि कल्पान्तरकारी कथाकार संघदासगणी ने मानव-जीवन की भूमिका में परिवर्तमान अपने मानुषातिमानुष पात्रों को ज्योतिषशास्त्र से स्वभावत: सम्बद्ध परिदर्शित किया है और इस क्रम में ज्योतिस्तत्त्वों का जितना उपयोग सहजतया सम्भव था, उन्होंने उनका यथाप्रसंग सम्यक् विनिवेश किया है। संघदासगणी द्वारा कथा के व्याज से प्रतिपादित ज्योतिषशास्त्र ज्योति:शास्त्र के रूप में प्रतिफलित हुआ है । अर्थात् वह शास्त्र, जिससे प्रकाश प्राप्त हो या प्रकाश के सम्बन्ध में ज्ञान का उपदेश मिले। इस प्रकार, संघदासगणी के ज्योतिष-विषयक तत्त्वों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि जिस शास्त्र से संसार का मर्म, जीवन-मरण का रहस्य और जीवन के सुख-दुःख के सम्बन्ध में पूर्ण प्रकाश मिले, वह ज्योतिषशास्त्र है। ज्योतिषाचार्य डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने कहा है
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy