SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की वृहत्कथा ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, जन्मकुण्डली के स्थानविशेष को 'भाव' कहते हैं। यथानिश्चित बारह राशियों के अनसार ये भाव या स्थान बारह होते हैं। इसी स्थान को लग्न भी कहा जाता है। अष्टम भाव से प्रधानत: आयु का विचार किया जाता है । इन बारहों स्थानों में, मनुष्य के जन्मनक्षत्र, तिथि, समय आदि के अनुसार यथानिर्धारित नौ ग्रहों का निवास होता है। एक स्थान में एक से अधिक ग्रह भी रहते हैं। लग्न में स्थित ग्रह अपने स्वभाव के अनुसार फलाफल को देनेवाला होता है। इसलिए, जन्मकुण्डली की ग्रहस्थिति के अध्ययन से मानव के सम्पूर्ण जीवन के अदृष्ट या भाग्य का ज्ञान किया जाता है। और, इस ज्ञान से भाग्य या अदृष्ट के घटनाचक्र में, पूर्वोपार्जित या क्रियमाण कर्मों द्वारा न्यूनाधिकता लाई जा सकती है, फिर इस विधि से अदृष्ट के अशुभ फलों की भोगावधि में भी कमी की जा सकती है। इसलिए, जीवन को उन्नतिशील बनाने एवं क्रियमाण सत्कर्मों द्वारा पूर्वोपार्जित अशुभ अदृष्ट के प्रभावों को मन्द करके, अपने भविष्य को सुधारने के निमित्त भी ज्योतिषियों द्वारा किया गया फलादेश मानव के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। लग्न में ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही किसी मनुष्य के दीर्घायु, मध्यमायु और अल्पायु होने का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसके अतिरिक्त, प्रतीकों या शकुन-प्रतीकों के माध्यम से भी आयु का विचार होता है। संघदासगणी ने शकुन-प्रतीकों के माध्यम से ही यत्र-तत्र आयु का विचार किया है। चारुदत्त की आत्मकथा के प्रसंग में, अज्ञात विद्याधर को खोजते हुए जब सभी आगे बढ़े, तब उन्हें कपड़े और गहने तो मिले ही, शल्लकीवृक्ष के झाड़ में कुछ केश भी फँसे दिखाई पड़े। गोमुख के कहने पर हरिसिंह ने जब केशों को सूंघा, तब धूप में तपे उन बालों में तीखी खुशबू मालूम पड़ी। इसपर गोमुख ने चारुदत्त से कहा : “इन केशों और वस्त्रों की गन्ध दीर्घायु व्यक्ति की प्रतीत होती है। ये केश चिकने और खुशबूदार हैं और जड़ से उखाड़े हुए नहीं हैं। इसलिए, वह विद्याधर दीर्घायु और श्रेष्ठ व्यक्ति है। इस व्यक्ति को राज्याभिषेक प्राप्त होगा (गन्धर्वदत्तालम्भ : पृ. १३८) ।” ज्ञातव्य है, 'वसुदेवहिण्डी' के अतिरिक्त, बृहत्कथामूलक सभी कथाग्रन्थों, जैसे 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह', 'कथासरित्सागर' और 'बृहत्कथामंजरी' में गोमुख बहुश्रुत पात्र के रूप में उपस्थित किया गया है, इसलिए उसने यहाँ ज्योतिष-विद्या के सामुद्रिक शास्त्र में अपनी पैठ का बड़ा प्रौढ़ परिचय दिया है। सृष्टि के आदिकाल में जब मिथुन-परम्परा प्रचलित थी, तब मिथुन-दम्पतियों की स्त्रियाँ अपनी आयु के दसवें भाग में पुत्र प्रसव करती थीं। कुलकरों को तो असंख्य करोड़ वर्ष की आयु प्राप्त थी (नीलयशालम्भ : पृ. १५७) । तीर्थंकरों की आयु भी हजारों-लाखों वर्षों की होती थी। भगवान् ऋषभदेव ने तिरसठ लाख पूर्व तक राज्य किया था। ज्योतिषी, पुरुष की आयु के समाप्त होने की घोषणा भी करते थे। एक ज्योतिषी ने पोतनपुर के राजा श्रीविजय के माथे पर सातवें दिन वज्र गिरने की भविष्यवाणी करके उनकी आयु की समाप्ति की घोषणा की थी। आयु और बल-वीर्य एवं कार्यक्षमता के अनुसार ही पुरुष के तीन भेद संघदासगणी ने किये हैं: उत्तम, मध्यम और अधम (पीठिका : पृ. १०१) । धमॆषणा में निरत पुरुष उत्तम होता है, धनैषणा में संलग्न पुरुष मध्यम माना जाता है और कामैषणा को प्रधानता देनेवाला पुरुष अधम कहा गया है। धर्म का आचरण करनेवाला मनुष्य दीर्घायु होता है, यह शास्त्रसम्मत है।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy