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________________ १२४ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा ___ अन्त में धनश्री को विनीतक का सही परिचय प्राप्त हुआ और फिर दोनों सुखपूर्वक दाम्पत्य-जीवन बिताने लगे। इस कथा में सती और असती दोनों प्रकार की स्त्रियों की चारित्रिक लोकरूढि पर प्रकाश . डाला गया है। साथ ही, आरक्षी-पदाधिकारियों की कामुकता और उसके दुःखद परिणाम को भी उजागर किया गया है। ६. पालित पुत्र के प्रति माता की कामभावना (पीठिका : पृ. ९१-९२) विद्याधर कालसंवर की पत्नी कनकमाला द्वारा पालित रुक्मिणी-पुत्र प्रद्युम्न जब पूर्ण युवा हो गया, तब कनकमाला उसपर रीझ गई और काम-मनोभावों को व्यक्त न कर पाने की स्थिति में वह कामपीड़ा से अस्वस्थ हो गई। प्रद्युम्न ने पूछा : “माँ, तुम्हें कैसी शरीरपीड़ा है ?" तब वह बोली : “स्वामी ! मुझे 'माँ' मत कहो। तुम जिसके पुत्र हो, वही तुम्हारी माँ है ।” प्रद्युम्न ने कहा: "क्यों उल्टी-सीधी बातें करती हो? मैं किसका पुत्र हैं, जो इस प्रकार कह रही हो?" कनकमाला ने वस्तुस्थिति स्पष्ट की : “हमदोनों पति-पत्नी ने तुम्हें भूतरमण अटवी की शिला पर पड़ा देखा था। वहीं से उठाकर तुम्हें अपने घर ले आये थे। मैंने सुना था कि कृष्ण की अग्रमहिषी रुक्मिणी के पुत्र को, पैदा होते ही किसी ने चुरा लिया है। कृष्ण के नाम से अंकित मुद्रा से मैं जानती हूँ कि तुम उन्हीं के पुत्र हो। तुम्हें कामभाव से चाहने के कारण मेरी यह दशा हो गई है।" प्रद्युम्न ने कनकमाला के इस काम-प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब, कनकमाला ने उसे निर्भय बनाने के लिए प्रज्ञप्ति-विद्या सिखा दी। प्रद्युम्न ने प्रज्ञप्ति-विद्या के सिद्ध होने पर भी, कनकमाला की अदम्य कामेच्छा पूर्ण नहीं की। तब, कनकमाला ने उसके वध का षड्यन्त्र रचा, किन्तु वह प्रज्ञप्ति-विद्या के बल से वहाँ से बच निकला। इस रूढिकथा या रूढकथा द्वारा 'भ्रमति च भुवने कन्दर्पाज्ञा विकारि च यौवनम्' जैसी कथारूढि-प्रधान कहावत को चरितार्थता प्रदान की गई है। साथ ही, नीतिकार शुक्रचार्य की इस रूढनीति को भी सार्थकता प्राप्त हुई है : सुवेषं पुरुषं दृष्ट्वा भ्रातरं पितरं सुतम् । योनि: क्लिद्यति नारीणां सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ इसके अतिरिक्त, इस रूढकथा में स्त्री का नायक से प्रेम-निवेदन और इच्छा पूर्ण न होने पर उसके द्वारा नायक के वध का षड्यन्त्र रचे जाने और फिर नायक के अपने विद्याबल से बच निकलने की कथानक रूढियाँ भी अद्भुत रस की सृष्टि करती हैं। इस प्रकार की कथारूढि बौद्धों के 'महापद्मजातक' में भी उपलब्ध होती है। राजा ब्रह्मदत्त के युवराज पद्मकुमार (पूर्वभव का बोधिसत्त्व) के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त होकर उसकी विमाता ने उसके समक्ष रमण करने का अनुचित प्रस्ताव रखा था। कामेच्छा की पूर्ति न होने पर विमाता ने कुमार पर बलात्कार का मिथ्या दोषारोपण कर उसका सिर कटवा देने का षड्यन्त्र किया।
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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