SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुदेवहिण्डी : भारतीय जीवन और संस्कृति की बृहत्कथा चढ़ा देगा, उसे कन्या सत्यभामा दे दी जायगी” – “जो एवं आरुहेइ तस्स कण्णा सच्चभामा दिज्जई (पृ. ३७०)।” ९८ कृष्ण ने धनुष पर डोरी चढ़ा दी और उन्होंने जाकर वसुदेव से कहा : तात ! मैंने सत्यभामा के घर में धनुष पर डोरी चढ़ाई है।” ("तात ! मया सच्चहामाघरे धणुं विलइयं ति । ” – तत्रैव) तब वसुदेव ने कहा : “बेटे ! धनुष पर डोरी चढ़ाकर तुमने बहुत अच्छा काम किया है। यह पहले सेही निश्चित है कि जो धनुष पर डोरी चढ़ायगा, उसी को यह कन्या (सत्यभामा) दी जायगी।” (“पुत्त ! सुट्टु कयं ते धणुं सजीवयं करेंतेण एवं पुव्वविवत्थियं - जो एयं धणुं सजीवं करेइ तस्स एसा दारिया दायव्वत्ति ।” - तत्रैव) वसुदेव के इसी कथन के साथ संघदासगणी - प्रोक्त कृष्णकथा पूरी हो जाती है और 'वसुदेवहिण्डी' का यथाप्राप्त प्रथम खण्ड भी इसी वाक्य के साथ समाप्त होता है । : इस प्रकार, कृष्णकथा के सार-संक्षेप के अवलोकन से कृष्ण की मानसिक ऊर्जा और शारीरिक र्या की अतिशयता बिलकुल स्पष्ट हो जाती है। शारीरिक दृष्टि से भी कृष्ण का व्यक्तित्व बड़ा ही दिव्य और विराट् है । वह अंगविद्या में उल्लिखित सभी शारीरिक लक्षणों से सम्पन्न थे । संघदासगणी ने बलराम और कृष्ण की शारीरिक संरचना का चित्रण करते हुए लिखा है दोनों भाइयों में बलराम का शरीर निर्जल ( उज्ज्वल) मेघ और कृष्ण का शरीर सजल (श्यामल) मेघ की छवि को पराजित करनेवाला था; उनकी आँखें सूर्य की किरणों के संस्पर्श से खिले हुए कमलों के समान थी; उनके मुख पूर्णचन्द्र की भाँति मनोरम और कान्तिमान् थे; उनके अंगों की विस्फूर्जित सन्धियाँ साँप के फन की तरह प्रतीत होती थी; उनकी बाँहें धनुष की तरह लम्बी और रथ के जुए की भाँति सुदृढ़ थी; श्रीवत्स के लांछन से आच्छादित उनके विशाल वक्ष:स्थल शोभा के आगार थे; उनके शरीरों के मध्यभाग इन्द्रायुध (वज्र) के समान और नाभिकोष दक्षिणावर्त थे । उनके कटिभाग सिंह के समान पतले और मजबूत थे; उनके पैर हाथी की सूँड़ के समान गोल और स्थिर थे; उनके घुटने सम्पुटाकार और मांसपेशी से आवृत थे; हरिण की जैसी जंघाओं की शिराएँ, मांसलता के कारण, ढकी हुई थीं; उनके चरणतल सम, सुन्दर, मृदुल, सुप्रतिष्ठित और लाल-लाल नखों से विभूषित थे और कानों को सुख पहुँचानेवाली उनकी वाणी की गूँज सजल मेघ के स्वर के समान गम्भीर थी।' इस प्रकार, कृष्ण और बलराम की शारीरिक सुषमा नितरां निरवद्य थी । रसमधुर, कलारुचिर एवं सौन्दर्योद्दीप्त कृष्णचरित के प्रतिपादक वैष्णव सम्प्रदाय के धार्मिक ग्रन्थों में श्रीमद्भागवत अग्रगण्य है। इसमें दार्शनिक विवेचन और धार्मिक चिन्तन, रूपकों और प्रतीकों के आधार पर किया गया है । परन्तु धर्म-दर्शन की बौद्धिक चेतना के उत्कर्ष के साथ इसमें कवित्व या काव्य का प्रौदिप्रकर्ष भी है। उसी प्रकार, 'वसुदेवहिण्डी' श्रीमद्भागवत की भािँ १. " तेसिं च पहाणा राम कण्हा निज्जल- सजलजलदच्छविहरा, दिवसयरकिरणसंगमावबुद्ध-पुंडरीयनयणा, गहवइसंपुण्णसोम्मतरवयणचंदा, भुयंगभोगोवमाणसुसिलिट्ठसंधी, दीह धणु-रहजुग्गबाहू, पसत्थलक्खणंकियपल्लवसुकुमालपाणिकमला, सिरिवच्छुत्थइय-विउलसिरिणिलयवच्छदेसा, सुरेसरायुधसरिच्छमज्झा, पयाहिणावत्तनाहिकोसा, मयपत्थिवत्थिमिय-संठियकडी, करिकरसरिसथिर- वट्टितोरू, सामुग्ग- णिभुग्गजाणुदेशा, गूढसिर- हरिणजंघा, समाहिय-सम-सुपइट्ठिय-तणु-तंबनखचलणा, ससलिलजलदरवगहिर- सवसुहरिभितवाणी । (पृ. ७७)
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy