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________________ वसुदेवहिण्डी की पौराणिक कथाएँ ९७ में आमन्त्रित किया; किन्तु जब पारण का समय आया, उग्रसेन, किसी अन्य कार्य में आसक्त हो जाने के कारण, अपनी वह बात भूल गया । कंस ने कहीं अन्यत्र पारण कर लिया। इस प्रकार का प्रमाद उग्रसेन से दो-तीन बार हो गया। फलत:, कंस के मन में विद्वेष हो आया और 'उग्रसेन के वध के लिए मैं जन्म लूँगा' ऐसा निदान करके वह कालधर्म को प्राप्त हुआ और राजा उग्रसेन की पत्नी के गर्भ में आया। रानी को. त्रिबलि-प्रदेश का मांस खाने का दोहद हुआ। इससे राजा ने निश्चय किया कि यह बालक उत्पन्न होकर, निस्सन्देह, कुल का विनाश करेगा। अत: जब बालक का जन्म हुआ, तब उस नवजात को कांस्य-मंजूषा में रखकर यमुना में प्रवाहित कर दिया गया। उस मंजूषा को शौरिपुर के रसवणिक् (तैल आदि तरल पदार्थों का व्यापारी) ने प्राप्त किया। वह बालक शौरिपुर में ही वसुदेव के पास क्रमश: बढ़ने लगा। समय बीतता चला गया। कंस ने राजा देवक की पुत्री देवकी के साथ वसुदेव का विवाह करा दिया। देवकी के विवाह के समय कंस की पत्नी जीवयशा ने मदमत्त होकर कंस के अनुज कुमारश्रमण अतिमुक्तक को, देवर होने के नाते, बड़ी देर तक परेशान किया। इससे क्षुब्ध होकर कुमारश्रमण ने जीवयशा को अभिशाप दे दिया : “अरी चंचले ! जिसके लिए प्रमुदित होकर नाच रही हो, उसका सातवाँ पुत्र तुम्हारे प्रिय पति का वध करेगा।” यह कहकर कुमारश्रमण अन्तर्हित हो गये। - इसी शाप से भयाकुल होकर कंस ने वसुदेव से देवकी के सात गर्भ माँग लिये। वसुदेव वचनबद्ध हो गये। दुरात्मा कंस ने देवकी के छह पुत्र मार डाले। कुमारश्रमण की भविष्यवाणी की सिद्धि के लिए वसुदेव ने प्रतिज्ञाभंग करके अपने सातवें पुत्र कृष्ण को बचा लिया। रात्रि में जिस समय बालक कृष्ण का जन्म हुआ, घोर वर्षा हो रही थी। कंस के द्वारा नियुक्त पहरेदार दिव्य प्रभाव से प्रगाढ़ निद्रा में सो गये। उसी समय वसुदेव बालक का जातकर्म करके उसे व्रज ले चले। अदृष्ट देवी बालक सहित वसुदेव पर छत्र तानकर चल रही थी। उनके दोनों ओर दीपिकाएँ जल रही थीं और श्वेत वृषभ सामने चल रहा था। यमुना नदी ने थाह दे दी। वसुदेव, यमुना पार कर व्रज पहुँच गये। वहाँ नन्दगोप की पत्नी यशोदा ने कुछ समय पहले बालिका प्रसव की थी। वसुदेव ने यशोदा को कुमार सौंप दिया और उससे बालिका लेकर तुरत यथावत् अपने भवन में लौट आये। बालिका को उन्होंने देवकी के समीप रख दिया और वह वहाँ से बाहर चले गये। कंस की परिचारिकाएँ उसी समय जग गईं और उन्होंने कंस को बालिका उत्पन्न होने की सूचना दी। ‘यह कुलक्षणा हो जाय' कहकर कंस ने उस बालिका की नाक काट डाली। कंस ने ज्योतिषियों से अतिमुक्तक कुमारश्रमण के आदेश के विपरीत हो जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने बताया कि भगवान् कुमारश्रमण का वचन प्रतिकूल नहीं हो सकता। सातवाँ बालक व्रज में बड़ा हो रहा है । तब, कृष्णजन्म की आशंका करते हुए कंस ने उसके विनाश के लिए कृष्णयक्ष को आदेश दिया। कृष्णयक्ष नन्दगोप के गोकुल में पहुँचा। फिर कंस ने गधे, घोड़े और बैल को भेजा। वे गोकुल के लोगों को पीड़ा पहुँचाने लगे। लेकिन, कृष्ण ने उनका विनाश कर दिया। वसुदेव ने गुप्त रूप से कृष्ण की रक्षा के निमित्त बलदेव को उपाध्याय के रूप में व्रज में भेजा। उसने कृष्ण को समस्त कलाओं की शिक्षा दी। कंस ने ज्योतिषी के वचन को प्रमाणित करने के लिए अपनी पुत्री सत्यभामा के घर में धनुष रखकर घोषणा की : “जो इस धनुष पर डोरी
SR No.022622
Book TitleVasudevhindi Bharatiya Jivan Aur Sanskruti Ki Bruhat Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeranjan Suridevi
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1993
Total Pages654
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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