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________________ महाकवि धनञ्जय :व्यक्तित्व एवं कृतित्व ६७ धरोहर के रूप में प्राप्त काव्यनिधि को नवीन काव्य-मूल्यों के विकास द्वारा विशेष समृद्ध किया। निष्कर्ष इस प्रकार प्रस्तुत अध्याय में डॉ. के.बी. पाठक, डॉ. भण्डारकर तथा ए. वेंकटसुब्बइया प्रभृति विद्वानों के मतों का निराकरण करते हुए धनञ्जय को ८००ई. के लगभग माना गया है, इसकी पुष्टि डॉ. ए.एन. उपाध्ये तथा डॉ. वी.वी. मिराशी आदि विद्वानों के मतों से होती है । धनञ्जय के पिता वासुदेव तथा माता श्रीदेवी थीं। गुरु का नाम दशरथ था । धनञ्जय अन्य जैन कवियों की भाँति साधु न होकर गृहस्थ था । वह संस्कृत का एक उद्भट विद्वान् था। धनञ्जय ने पाँच कृतियों की रचना की-१. विषापहार-स्तोत्र, २. नाममाला, ३. अनेकार्थ-नाममाला, ४. यशोधरचरित तथा ५. द्विसन्धान-महाकाव्य । द्विसन्धान का अपरनाम 'राघवपाण्डवीय' है। नाम से ही स्पष्ट है कि इसमें रामायण तथा महाभारत की कथाएं उपनिबद्ध हैं । द्विसन्धान पर नेमिचन्द्र की पदकौमुदी, बद्रीनाथ कृत टीका, पुष्यसेन कृत टीका एवं कवि देवर कृत राघवपाण्डवीयप्रकाशिका आदि टीकाएं उपलब्ध हैं । द्विसन्धान की अन्य संस्कृत काव्यों से तुलना करने पर यह सिद्ध हो जाता है कि यह कालिदास के रघुवंश, मेघदूत तथा अभिज्ञान-शाकुन्तल, भारवि के किरातार्जुनीय तथा माघकृत शिशुपालवध से पर्याप्त प्रभावित रहा है । लेखक ने पूर्ववर्ती महाकाव्य-परम्परा का पालन करते हुए 'द्विसन्धान-महाकाव्य' को एक ऐसे उदाहरण के रूप में उपनिबद्ध किया, जिससे कि रामायण एवं महाभारतीय युगीन महाकाव्य-चेतना शब्दाडम्बरपूर्ण काव्य-लेखन से चमत्कृत हो उठे। सन्धान-शैली के आदि-कवि के रूप में धनञ्जय का नाम उन गिने-चुने कवियों में लिखा जा सकता है, जिन्होंने संस्कृत साहित्य के सृजन को मौलिक आयाम दिये।
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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