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________________ ६६ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना यह पद्य किरातार्जुनीय के उस पद्य से भावसाम्य रखता प्रतीत होता है, जिसमें राजा की शासन-पद्धति तथा नीति-पथ का वर्णन करते हुए काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, और अहंकार आदि प्राणिशत्रुओं को जीत लेने का निर्देश किया गया द्विसन्धान का पद्य २.१० भी किरातार्जुनीयम् के पद्य १.३ से तुलनीय है। शिशुपालवध तथा द्विसन्धान-महाकाव्य द्विसन्धान-महाकाव्य पर माघकृत शिशुपालवध का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है । द्वारकापुरी का चित्रण शिशुपालवध के द्वारका-वर्णन से अनुप्राणित प्रतीत होता है । धनञ्जय द्वारकापुरी के बाजारों का वर्णन निम्न प्रकार से करते हैं प्रवालमुक्ताफलशङ्खशुक्तिभिर्विनीलकर्केतनवज्रगारुडैः । यदापणा भान्ति चतुःपयोधयः कुतोपि शुष्का इव रत्नशेषतः ॥२ यहाँ मोती,मूंगा, शैल, सीप, कर्केतन, लाल, हीरा, गरुडमणि आदि से भरे हुए बाजारों की उन समुद्रों से तुलना की गयी है, जिनका पानी सूखकर रत्न ही शेष रह गये हों । यह वर्णन शिशुपालवध के निम्न वर्णन से साम्य रखता है वणिक्पथे पूगकृतानि यत्र भ्रमागतैरम्बुभिरम्बुराशिः । लोलैरलोलद्युतिमाञ्जिमुष्णान् रत्नानि रत्नाकरतामवाप ॥२ द्विसन्धान के पद्य १.२६ तथा १.३० भी क्रमश: शिशुपालवध के पद्य १.२५ तथा ३.४४ से तुलनीय है। एवंविध हम देखते हैं कि सन्धान-कवि धनञ्जय ने अपने पूर्ववर्ती कालिदास, भारवि, माघ आदि महाकवियों की सुन्दर काव्याभिव्यक्तियों और रमणीय कल्पनाओं के प्रति महान् आदर प्रकट करते हुए उनसे अपने काव्य की श्रीवृद्धि का भी पूरा-पूरा लाभ उठाया है । इससे यह भी द्योतित होता है कि उन्होंने अपने समय तक की महान् काव्यकृतियों का विशेष रसास्वादन किया था और पूर्व कवियों की १. किरातार्जुनीय,१९ २. द्विस.१.३२ ३. शिशुपालवध,३.३८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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