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________________ ६० चरित तथा (५) द्विसन्धान-महाकाव्य । (१) विषापहार-स्तोत्र' यह ३९ इन्द्रवज्रा वृत्तों में लिखा गया स्तुतिपरक काव्य है । २ ए.एन. उपाध्ये इस काव्य को ४० पद्यों की ऋषभ - जिन स्तुति कहते हैं । उनके अनुसार इसके प्रथम ३९ पद्य उपजाति वृत्त में तथा अन्तिम पद्य पुष्पिताग्रा वृत्त में रचा गया है । ३ ऐसा प्रतीत होता है कि इसके चौदहवें पद्य के आदि में प्रयुक्त विषापहारं मणिमोषधानि इत्यादि पद से इसका नामकरण हुआ । इसी पद्य से स्तोत्र के लिये एक अनुश्रुति भी प्रचारित हो गयी कि इसके पाठ से सर्प का विष दूर हो जाता है । यह विशद भाषा में निबद्ध काव्य है । यह स्तोत्र अपनी प्रौढ़ता, गम्भीरता और अनूठी उक्तियों के लिए प्रसिद्ध है । अन्तिम पद्य में श्लेष के माध्यम से धनञ्जय का नामोल्लेख किया गया है। नाथूराम प्रेमी के अनुसार इसके कुछ परम्परावादी विचार जिनसेन ने अपने आदिपुराण में तथा सोमदेव ने यशस्तिलक में अपनाये हैं। इसकी एक संस्कृत टीका जैन मठ, मूडबिद्री (द. कनारा) में उपलब्ध है । ६ नेमिचन्द्र शास्त्री ने पार्श्वनाथ पुत्र नागचन्द्र कृत संस्कृत टीका का उल्लेख किया है।७ सन्धान- कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना (१) विषापहार-स्तोत्र, (२) नाममाला, (३) अनेकार्थनाममाला, (४) यशोधर (२) नाममाला इसे कुछ हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में धनञ्जय-निघण्टु के नाम से अभिहित किया गया है । यह २०० पद्यों का अमरकोश जैसा अत्यन्त महत्वपूर्ण १. काव्यमाला सिरीज़, नं.७, बम्बई, १९२६ में प्रकाशित २. द्रष्टव्य-नेमिचन्द्र शास्त्रीः संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ. ३६५ तथा नाथूराम प्रेमी: जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, १९५६, पृ. ११० द्विस. का प्रधान सम्पादकीय, पृ. २१ ३. ४. ५. ६. ७. वितरति विहिता यथाकथञ्चिज्जिनविनताय मनीषितानि भक्तिः । त्वयि नुतिविषया पुनर्विशेषाद् दिशति सुखानि यशो धनं जयं च ॥ विषापहार-स्तोत्र. ४० नाथूराम प्रेमी: जैन साहित्य और इतिहास, बम्बई, १९५६, पृ., १०९ कन्नड़ ताड़पत्रीय ग्रन्थसूची, पृ. १९२-९३ नेमिचन्द्र शास्त्री: संस्कृत काव्य के विकास में जैन कवियों का योगदान, पृ. ३६५
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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