SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाकवि धनञ्जय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व और उसे भ्रमात्मक सिद्ध किया । जिन तथ्यों के आधार पर डॉ. पाठक के मत की आलोचना की गयी, वे इस प्रकार हैं (१) डॉ. पाठक धनञ्जय को रचयिता तो मानते हैं और श्रुतकीर्ति को धनञ्जय की उपाधि स्वीकार करते हैं, परन्तु द्विसन्धान-काव्य में उन्होंने कहीं भी इस श्रुतकीर्ति विद्य जैसी उपाधि का उल्लेख नहीं किया है । यहाँ तक कि नाममाला में भी इसका कोई निर्देश नहीं है। इसके अतिरिक्त पम्प द्वारा निर्दिष्ट राघवपाण्डवीय के कर्ता श्रुतकीर्ति कोल्हापुर जैन बसदि के पुरोहित श्रुतकीर्ति से भिन्न थे, जबकि दोनों का उपनाम त्रैविद्य-आगम,तर्क और व्याकरण में निष्णात था । इस वैभिन्यका कारण यह है कि उनकी गुरु-परम्पराएं भिन्न हैं । पम्प द्वारा निर्दिष्ट राघवपाण्डवीय के कर्ता श्रुतकीर्ति विद्य की गुरु-परम्परा बालचन्द्र-मेघचन्द्र-श्रुतकीर्ति-वासुपूज्य-श्रुतकीर्ति थी, जबकि कोल्हापुर जैन बसदि के पुरोहित श्रुतकीर्ति त्रैविद्य की गुरु-परम्परा कुलभूषण-कुलचन्द्र-माघनन्दि-श्रुतकीर्ति थी। (२) पञ्चतन्त्र का कर्ता दुर्गसिंह चालुक्य राजा जगदेकमल्ल द्वितीय (११३९-११५० ई.) का समकालीन नहीं था। दुर्गसिंह अपने ग्रन्थ के पद्य ३०, ३२, ३६, ३८ तथा ५७ में उल्लेख करता है कि उसका संरक्षक चालुक्यराज था, जो जयसिंह और जगदेकमल्ल नाम से प्रसिद्ध था। कीर्तिविद्याहर, कोदण्ड-राम और चोळ् कालानल उसके बिरुद थे । तीन चालुक्य राजाओं में से केवल एक ही जगदेकमल्ल प्रथम नाम से प्रसिद्ध था तथा उसी का नाम जयसिंह भी था । बेलगामे अभिलेख से प्रतीत होता है कि जगदेकमल्ल प्रथम या जयसिंह द्वितीय के ही उपर्युक्त तीन बिरुद थे। इससे स्पष्ट है कि दुर्गसिंह का संरक्षक जगदेकमल्ल द्वितीय नहीं, अपितु जगदेकमल्ल प्रथम या जयसिंह द्वितीय था, जिसने १०१५-१०४२ ई. में शासन किया। (३)अभिनवपम्प ने अपनी रामायण की रचना शक सं.१०६७ में नहीं की। श्रवणबेल्गोला के एक अभिलेख में पम्परामायण से एक पद्य जैन मुनि मेघचन्द्र की प्रशंसा में उद्धृत है । इस अभिलेख में, जो १११६ ई. से पूर्व उत्कीर्ण नहीं हुआ, १. जैनशिलालेखसंग्रह,पृ.२६-२७ । २. E.K. भाग ७,शिकारपुर १२६ और द्रष्टव्य- न.२० ए,१२५ व १५३ (उसी. तालुक के) ३. वही,भाग २,नं.१२७,जैनशिलालेखसंग्रह,पृ.६४
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy