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________________ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना जैन कवि लाभविजय ने तमो दुर्वाररागादि वैरिवारनिवारणे। अर्हते योगिनाथाय महावीराय तायिने । पद्य के पांच सौ अर्थ किये हैं। _ 'दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ'२ से सूचना प्राप्त होती है कि मनोहर और शोभन कवियों द्वारा चतुस्सन्धान-काव्य की रचना की गयी। इसी ग्रन्थ से नरेन्द्रकीर्ति के शिष्य जगन्नाथ के सप्तसन्धान-काव्य की सूचना भी प्राप्त होती है । जगन्नाथ कवि का एक चतुर्विंशतिसन्धान-काव्य भी उपलब्ध है। इस ग्रन्थ में श्लेषमय एक ही पद्य से २४ तीर्थंकरों का अर्थबोध होता है। वह पद्य निम्नलिखित है श्रेयान् श्रीवासुपूज्यो वृषभजिनपति: श्रीद्रुमाङ्कोऽथ धर्मो हर्यक पुष्पदन्तो मुनिसुव्रतजिनोऽनन्तवाक् श्रीसुपार्श्व: । शान्ति: पद्मप्रभोरो विमलविभुरसां वर्धमानोऽप्यजाङ्को, मल्लिर्नेमिनमिर्मी सुगतिरवतु सच्छ्रीजगन्नाथधीरम् ॥ चतुर्विंशतिसन्धान-काव्य के अन्त में कवि जगन्नाथ ने काव्य के रचनाकाल का निर्देश किया है । तदनुसार उन्होंने वि. सं.१६९९ ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी रविवार के दिन सुन्दर भवनों से सुशोभित अम्बावत् नामक नगर में इस काव्य की रचना की। पं. कैलाश चन्द्र शास्त्री ने इन्हें पण्डितराज जगन्नाथ से अभिन्न माना है और रसगंगाधर के रचयिता के रूप में सम्भावना प्रकट की है।५ डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री कैलाशचन्द्र जी की सम्भावना को भ्रान्ति मानते हैं, क्योंकि इस काव्य के संस्कृत टीकाकार स्वयं कवि जगन्नाथ हैं और टीका के अन्त में उनके द्वारा अंकित पुष्पिका १. द्रष्टव्य-जैन सिद्धान्त भास्कर,भाग ८,किरण १ २. गांधी नाथारंगजी,शोलापुर,१९२८से प्रकाशित ३. चतुर्विंशतिसन्धान-काव्य,जैन हितैषी,बम्बई,भाग ६,अंक ५-६ में प्रकाशित,पृ.१ ४. नयनयधररूपाङ्के सुवत्से तपोमासे इह विशदपञ्चम्यां च सत्सौरिवारे । विहित जिनमहोऽम्बावत्पुरे सौधशुभ्रे सुजिननुतिकार्षीच्छ्रीजगन्नाथनामा ।। चतुर्विंशतिसन्धान-काव्य,अन्त्यप्रशस्ति पद्य जैन सिद्धान्त भास्कर,भाग ५,किरण ४,पृ.२२५
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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