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________________ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना निकलने की प्रतिस्पर्धा द्वारा उसकी कीर्ति को निरस्त करने का प्रयास भी किया। फलस्वरूप शिशुपालवध का इतिवृत्त भारवि के कथानक से भी छोटा होने के कारण उन्हें वस्तु-व्यापार के अप्रासंगिक और अत्यधिक अलंकृत वर्णनों के विस्तार से काव्य के कलेवर की वृद्धि करनी पड़ी। माघ में कवित्व की कमी नहीं है, किन्तु वह जहाँ भी आता है पाण्डित्य का परिधान पहनकर आता है । वर्तमान रूप में माघ का शिशुपालवध कृत्रिमता, अलंकृति और रूढ़िपालन का प्रौढ़ किन्तु अनुकरणीय निदर्शन है । इस सन्दर्भ में डॉ. एस के. डे का मत है कि भारवि, माघ आदि प्रारम्भिक रीतिबद्ध कवियों ने अलंकार-ग्रन्थों का अध्ययन करके महाकाव्यों की रचना नहीं की, इसके विपरीत प्रारम्भिक आलंकारिक आचार्य भामह और दण्डी ने जो नियम बनाये हैं और आलोचना की है, वह सब उन कवियों के महाकाव्यों को, विशेष रूप से भारवि के किरातार्जुनीयको पढ़कर लिखी गयी प्रतीत होती है। यही कारण है कि उनमें अव्याप्ति दोष तो है ही, वे अपने पूर्ववर्ती कवियों के काव्यों के ऐतिहासिक और काव्यात्मक मूल्यों पर भी कुछ प्रकाश नहीं डाल सके हैं । भामह भारवि से पर्ववर्ती और दण्डी के समकालीन माने जाते हैं, इसलिए भामह और दण्डी भारवि के आधार पर लक्षण-ग्रन्थों की रचना नहीं कर सकते । वस्तुत: छठी शती का युग ही ऐसा था जिसमें साहित्य अत्यधिक अलंकृति, पाण्डित्य-प्रदर्शन आदि कृत्रिम '' साधनों से आक्रान्त हो गया था। माघ की चमत्कारजनक कृत्रिम शैली से प्रभावित परवर्ती कवि उनका अनुगमन करने लगे, परिणामत: परवर्ती काव्य-साहित्य पर उनकी अमिट छाप परिलक्षित होती है। एवंविध माघोत्तर महाकाव्य कविप्रतिभा की स्वाभाविक अभिव्यक्ति न रहकर विद्वत्ताप्रदर्शन, अनियन्त्रित-वर्णन तथा शब्दाडम्बर की क्रीड़ास्थली बन गया। . इस शैली के माघोत्तर काव्यों मे रत्नाकर का हरविजय, शिवस्वामी का कप्फिणाभ्यदय (दोनों नवीं शताब्दी), मंख का श्रीकण्ठचरित, श्रीहर्ष का नैषधचरित (दोनों बारहवीं शताब्दी) आदि प्रमुख हैं। इन महाकाव्यों में पानगोष्ठी, सैन्यप्रयाण, युद्ध-वर्णन आदि रीतिबद्ध तथा गतानुगतिक वर्णनों का बाहुल्य है, जिससे इनका प्रतिपाद्य गौण बन गया है। श्रीहर्ष ने नैषधचरित में नल-दमयन्ती के विवाह के कथातन्तु को पकड़ कर अलंकृति तथा प्रौढ़ि को चरमसीमा तक पहुँचा १. डॉ.एस.के.डे : हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर,पृ.१७४
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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