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________________ सन्धान महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा इसके पन्द्रह आश्वासकों में सेतबन्ध से लेकर रावणवध तथा राम के अयोध्या-आगमन तक की रामायण-कथा वर्णित है। इसकी कथावस्तु बहुत संक्षिप्त है, किन्तु प्राकृतिक दृश्य, युद्ध, विरह-शोक आदि भावों का यथोचित वर्णन किया गया है । प्रौढ़ और प्रसाद गुणयुक्त भाषा, उक्ति-वैचित्र्य, अलंकृत-चित्रण, प्रासंगिक वस्तु-व्यापार-वर्णन और प्रसाद गुण के कारण ही इसे रीतिमुक्त रससिद्ध शास्त्रीय महाकाव्य स्वीकार किया जा सकता है। (ख) रूढिबद्ध या रीतिबद्ध शास्त्रीय महाकाव्य ___ छठी शताब्दी के अनन्तर साहित्यिक एवं सामाजिक चेतना में गम्भीर परिवर्तन का सूत्रपात हआ। विभिन्न ऐतिहासिक कारणों से संस्कृत भाषा जनसामान्य से विच्छिन्न होकर शनैः शनै: बहुश्रुत पण्डित वर्ग तक ही सीमित रह गयी। परिणामस्वरूप विद्वत्तासम्पन्न पण्डितों की बौद्धिक साधना ही काव्य का लक्ष्य बन गयी। ह्रासोन्मुख सामन्त युग की प्रवृत्तियों के कारण महाकाव्यों में उत्तरोत्तर कृत्रिमता, शास्त्रीय विदग्घता तथा विलासिता का समावेश होता गया। महाकाव्य के क्षेत्र में रीतिबद्धता की यह प्रवृत्ति सर्वप्रथम भारवि के किरातार्जुनीय में परिलक्षित होती है । कालिदास तथा भारवि के मध्यवर्ती युग के महाकाव्यों के अभाव में इस शैली की उद्भावना का सारा दोष भारवि को देना तो न्यायसंगत नहीं, किन्तु अलंकृति के प्रदर्शन की प्रवृत्ति के सम्मुख आत्मसमर्पण करने वाले वे प्रथम ज्ञात कवि हैं। भारवि की शैली कालिदास तथा माघ की मध्यवर्ती काव्य शैली की प्रतीक है । वह विकटबन्ध पदावली का आश्रय तो नहीं लेती किन्तु वह बहुविध शास्त्रीय ज्ञान तथा अलंकारों के बरबस विन्यास से बोझिल है। डॉ. एस. के. डे के अनुसार भारवि की कला प्राय: अत्यधिक अलंकृत नहीं है, किन्तु आकृति सौष्ठव की नियमितता व्यक्त करती है। भारवि की अभिव्यंजना शैली का परिपाक अपनी उदात्त स्निग्धता के कारण सुन्दर लगता है, उसमें शब्द और अर्थ के सुडौलपन की स्वस्थता है, किन्तु महान् कविता की उस शक्ति की कमी है, जो भावों की स्फूर्ति तथा हृदय को उठाने की उच्चतम क्षमता रखती है । भारवि के किरातार्जुनीय में महाकाव्य की विषय-वस्तु और रूप-शिल्प का सन्तुलन बिगड़ा तो उत्तरोत्तर बिगड़ता ही गया । माघ ने शिशुपालवध में भारवि की पद्धति को अपनाया ही नहीं अपितु अलंकृति और विद्वत्ता-प्रदर्शन में आगे १. डॉ.एस.के.डे : हिस्ट्री आफ संस्कृत लिटरेचर,पृ.१८२
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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