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________________ सन्धान-महाकाव्य : इतिहास एवं परम्परा से ही क्रमश: (१) वीर-भावना से युक्त विकसनशील महाकाव्य, (२) रोमांचक महाकाव्य तथा (३) प्राचीन इतिहास-पुराण का विकास हुआ।१ । वेदों में इन्द्र-सम्बन्धी जितनी गाथाएं या आख्यान हैं, उन्हें गाथाचक्र का पूर्वरूप कहा जा सकता है। वैदिक साहित्य में सुपर्णाध्याय या सुपर्णाख्यान को Winternitz द्वारा गाथाचक्र ही माना गया है। इस आख्यान में कद्रू और विनता की गाथा वर्णित है, जिसका वैदिक साहित्य से लेकर महाभारत आदि तक अनेक ग्रन्थों में उल्लेख हुआ है । ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय इतिहास और पुराण, जिन्हें छान्दोग्योपनिषत् में पंचम वेद कहा गया है, का विकास भी भारतीय गाथाचक्रों के रूप में हुआ है। Winternitz, Pargiter प्रभृति विद्वानों के अनुसार वैदिक काल में ही वैदिक संहिताओं की भाँति इतिहास तथा पुराणों की भी संहिताएं थीं, जो पौराणिक, ऐतिहासिक और निजन्धरी वृत्तों का संग्रह थीं।। स्वयं महाभारत भी अनेक गाथाओं और गाथाचक्रों का विशाल भण्डार है।५ महाकाव्य के विकास की दो धाराएं विश्व के सभी देशों में जहाँ महाकाव्य की रचना हुई है, उसकी परम्परा दो धाराओं में विभक्त होकर प्रवाहित होती आ रही है (१) मौखिक परम्परा वाली धारा, तथा (२) लिखित परम्परा वाली धारा। यद्यपि इन दोनों धाराओं में बहुत अन्तर है, पर वस्तुत: दोनों महाकाव्य की ही धाराएं हैं, क्योंकि दोनों के मूल तत्त्व एक ही हैं । प्रथम धारा के अन्तर्गत आने वाले महाकाव्यों को विकसनशील महाकाव्य' और द्वितीय के अन्तर्गत आने वालों को 'अलंकृत महाकाव्य' कहते हैं। १. हिन्दी साहित्य कोश,भाग १,बनारस,सं.२०१५,पृ.१८२ २. Winternitz : A History of Indian Literature, Vol. I, p.312. ३. छान्दोग्योपनिषत,३.३,४ ४. Winternitz : A History of Indian Literature, Vol. I, p. 313 (f.n.4); Pargiter : Ancient Indian Geneologies and Chronologies, p.4. ५. हिन्दी साहित्य कोश,भाग १,पृ.५७९ .
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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