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________________ २१८ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना एवं लोभी राजा को सहज ही अनुकूल बना सकता है । शत्रु राज्य को निर्बल करने के लिए विविध प्रकार के किये गये उपाय भेद के अन्तर्गत आते हैं । साम में स्वयं मिलने का प्रयत्न किया जाता है, किन्तु भेद में फूट डालकर आधीनता स्वीकार करानी पड़ती है । दण्डका अभिप्राय है-युद्ध करना । दण्ड का प्रयोग शक्तिहीन पर ही किया जा सकता है, सबल पर नहीं। अत: इस उपाय का प्रयोग करने से पूर्व अपनी शक्ति और बल का विचार कर लेना आवश्यक है। उपर्युक्त चार उपायों में साम सर्वोत्तम, भेद मध्यम, दान अधम और दण्ड कष्टतम है। द्विसन्धानमहाकाव्य में इन चतुर्विध उपायों का विशेष उल्लेख हुआ है। प्राचीन राजनीति-शास्त्रज्ञों की मान्यता यह रही है कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये राजा को दण्ड की अपेक्षा अन्य तीन उपायों की सहायता लेनी चाहिए, किन्तु यदि शत्रु फिर भी वश में न आये और अन्य तीन उपाय निष्फल हो जाएं, तो दण्ड का प्रयोग करना चाहिए। इस सम्बन्ध में मनु का भी यह कथन है कि राज्य की समृद्धि के लिये साम तथा दण्ड को उत्तम समझना चाहिए। द्विसन्धान-महाकाव्य के अनुसार साम से मित्र-प्राप्ति होती है और दण्ड से शत्रु की प्राप्ति,अत: साम के स्थान पर १. तु: मम सर्वं तवैवास्ति दानं मित्रे सजीवितम् ॥ करैर्वा प्रमितैनामैर्वत्सरे प्रबलं रिपुम् । तोषयेत्तद्धि दानं स्याद्यथायोग्येषु शत्रुषु ॥',शुक्रनीतिसार,४.२५.२९ तथा द्रष्टव्य - डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री : आदि पुराण में,पृ.३५९-६० २. तु.-'मित्रेन्यमित्रसुगुणान्कीर्तयेद्भेदनं हि तत् । शत्रुसाधकहीनत्वकरणात्प्रबलाश्रयात् । तद्धीनतोज्जीवनाच्च शत्रुभेदनमुच्यते ॥',शुक्रनीतिसार,४.२६,३० ३. द्रष्टव्य -डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में,पृ.३५९ ४. 'मित्रे दण्डो नाकरिष्ये मैत्रीमेवंविधोऽसिचेत् ।। दस्युभिः पीडनं शत्रोः कर्षणं धनधान्यतः। तच्छिद्रदर्शनादुप्रबलैर्नीत्या प्रभीषणम् ॥ प्राप्तयुद्धानिवर्तित्वैस्त्रासनं दंड उच्यते।.',शुक्रनीतिसार,४.२६,३०-३१ ५. द्रष्टव्य -डॉ.नेमिचन्द्र शास्त्री : आदिपुराण में,पृ.३६० ६. द्रष्टव्य-वही,पृ.३५९ ७. द्विस,११.१७-१९ ८. द्रष्टव्य-मनुस्मृति,७.१०८,१९८ ९. द्रष्टव्य-वही,७.१०७,१०९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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