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________________ द्विसन्धान-महाकाव्य का सांस्कृतिक परिशीलन २१३ कारण थी । सामन्त संघ - वृत्ति से अवसरवादी राजनीति का आश्रय लेते थे । समग्र भारत इसी सामन्तवादी राजचेतना से अनुप्राणित रहा था । ' उपर्युक्त राजनैतिक वातावरण की पृष्ठभूमि में द्विसन्धान - महाकाव्य की राजनैतिक अवस्था का मूल्यांकन किया जा सकता है । शासन-पद्धति से सम्बद्ध राजनैतिक विचारों और राज्य-व्यवस्था सम्बन्धी गतिविधियों की सार्थकता भी इन्हीं परिस्थितियों के सन्दर्भ में आँकी जानी चाहिए । द्विसन्धान- महाकाव्य में शासन- तंत्र सम्बन्धी उन अनेक तत्त्वों का उल्लेख आया है जिन्हें रामायण, महाभारत आदि के काल में तथा धर्मशास्त्रों के युग में 'सप्ताङ्ग राज्य', 'षड्विध बल', 'त्रिविध शक्तियाँ, 'चतुर्विध उपाय' के रूप में संस्थागत मान्यता प्राप्त हो चुकी थी । आलोच्य युग में इनका व्यावहारिक रूप कैसा था उस दृष्टि से द्विसन्धान - महाकाव्योक्त शासन-तन्त्र सम्बन्धी उल्लेख समसामयिक राजनैतिक पृष्ठभूमि को विशेष महत्व देते जान पड़ते हैं । द्विसन्धान - महाकाव्य में प्रतिबिम्बित राजनैतिक दशा इस प्रकार रही थी सप्ताङ्ग राज्य प्राचीन भारतीय राजनीति - शास्त्रकारों ने शासन-तन्त्र के सात अंग स्वीकार किये हैं- (१) स्वामी, (२) अमात्य, (३) राष्ट्र या जनपद, (४) दुर्ग, (५) कोष, (६) दण्ड तथा (७) मित्र ।२ द्विसन्धान - महाकाव्य में प्रकृतिषु सप्तसु स्थिति: ३ कहकर अंगो की संख्या सात ही मानी गयी है। टीकाकार नेमिचन्द्र ने सात प्रकृतियों के अन्तर्गत नीतिशास्त्र-विशारदों द्वारा स्वीकृत शासन-तन्त्र के उपर्युक्त सप्ताङ्गों को ही स्वीकार किया है । ४ १. २. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा : मध्यकालीन भारतीय संस्कृति, इलाहाबाद, १९६६, पृ.१३८ ‘स्वाम्यामात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः । ', अर्थशास्त्र, ६.१ (पृ.५३५); मनुस्मृति, ९. २९४; कामन्दकनीतिसार, ४.१ तु.—Choudhary, Gulab Chandra : Political History of Northern India from Jain Sources, p. 332 ३. द्विस., २.११ ४. 'सप्तसु प्रकृतिसुस्वाम्यामात्यसुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबललक्षणासु', द्विस, २.११ पर पदकौमुदी टीका, पृ. २८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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