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________________ २०२ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना वर्णों वाले छन्दों से सुग्रीव के उदार चरितं की प्रशंसा करते हैं। इसके विपरीत महापुरुष उसके समक्ष समर्पण कर दुःख, निराशा आदि से साहस खोकर सर्वगुरु वर्णों वाले छन्दों से उसकी प्रशंसा करते हैं। ___ इस प्रकार हम यह देखते हैं कि लघु वर्ण सर्वदा उत्साही या भावनाप्रधान कथोपकथनों से सम्बद्ध होते हैं। और गुरु वर्ण शान्त और संयत से । विशेष वर्णों का बाहुल्य पद्य में ग्रथित मुख्य विचार को द्योतित करता है, क्योंकि लय विचाराभिव्यक्ति में ही अन्तर्निहित है। कुछ छन्द लय और सुर के सन्दर्भ में उल्लेखनीय हैं, क्योंकि इनके आधार पर ही उनका नामकरण किया गया है। ऐसे छन्दों में द्विसन्धानोक्त वियोगिनी नामक निम्नलिखित छन्द द्रष्टव्य है विगणय्य परस्य चात्मन: प्रकृतीनां समवस्थिति पराम्। अमुयोपचिता: कयापि चेद्विषतेऽसूयियिषन्ति सूरयः ।। प्रस्तुत प्रसंग में जाम्बवन्त अथवा बलराम रावण अथवा जरासन्ध के विरुद्ध युद्ध के लिये अपनी सम्मति प्रकट कर रहे हैं । कवि धनञ्जय ने लघु वर्णों के बाहुल्य वाले वियोगिनी छन्द द्वारा यहाँ जाम्बवन्त तथा बलराम के संदेशों में भावनात्मकता का पुट दिया है । परन्तु एक नियमित अंतर पर गुरु वर्गों का प्रयोग बन्धुता अथवा बन्धुओं के संहार की आशंका से विषादपूर्ण अभिव्यक्ति भी करा रहा है। जब क्रोध दुःख में, हर्ष आश्चर्य में परिणत हो जाए, तब इस प्रकार की परिस्थितियों में दो या अधिक लय वाले छन्दों की आवश्यकता होती है । मन्दाक्रान्ता इसी प्रकार का छन्द हैसेनां विष्णोरथरयमयीं धीरकाकुस्थनादां नागैर्व्याप्तामिह समकरैर्दिगतैरीक्षितासे। कल्पान्ताब्धिप्लुतिमिव महाभीममतस्यध्वजौघां । संगन्तासे त्वमचिरमतस्तेन पद्धेश्वरेण ॥२ १. द्विस.,११:३९ २. वही,१३.४३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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