SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छन्द-योजना २०१ यहाँ कई प्रकार की लय विभिन्न नामों से पहले ही निर्धारित कर दी गयीं । इस प्रकार वैदिक साहित्य में लय शब्दानुगामी है, तो लौकिक संस्कृत साहित्य में शब्द लयानुगामी हैं। यदि लौकिक कवि लय-परिवर्तन न कर सकें, तो अगणित पर्यायवाची शब्दों के द्वारा वे शब्द-परिवर्तन करना ही प्रारम्भ कर देते हैं। उसी लय को बनाये रखने के लिये कई बार वे समानार्थक धातुओं से नये शब्द बनाकर भी शब्द परिवर्तन कर देते हैं। इस प्रकार की काव्य-योजनाएं बहुत-सी बार असफल हो जाती हैं, जिसे सफल बनाने के लिये कवि और अधिक कृत्रिम काव्य-योजनाओं की रचना करने लगते हैं। अभिप्राय यह है कि लौकिक संस्कृत साहित्य में लयात्मक नियमितता शब्द और अर्थ के औचित्य का स्थान प्राप्त कर गयी है । फिर भी, लौकिक संस्कृत छन्द लयात्मक-नियमितता की दृष्टि से अद्भुत छन्द और भाव-गाम्भीर्य द्विसन्धान-महाकाव्य में भी व्यर्थी कथानक का समावेश होने से अनेक प्रकार की कृत्रिम योजनाओं को प्रश्रय मिला है। किन्तु छन्द-योजना के सन्दर्भ में यह महाकाव्य लयात्मक-नियमितता के अतिरिक्त भाव-प्रवणता से भी युक्त है। यहाँ तक कि कवि ने सुग्रीव के उदार स्वभाव की प्रशंसा के व्याज से सर्वलघु अथवा सर्वगुरु मात्राओं वाले छन्दों की उत्कृष्टता पर बल दिया है आश्रयस्त्वमसि सर्वलघूनां सेविता भवसि सर्वगुरूणाम् । छन्दसस्तव च वृत्तिमुदारां वर्णयन्ति कवयश्चरितेषु ।।१ लयों और वर्गों में अभिव्यक्त विविध भाव गुरु वर्ण के उच्चारण में लघु वर्ण की अपेक्षा लगभग दुगना समय लगता है। यह भी कहा जा सकता है कि लघु वर्ण द्रुत गति से तथा गुरु वर्ण विलम्बित गति से बोले जाते हैं। सामान्यत: व्यक्ति क्रोध, प्रसन्नता आदि विविध प्रकार के भावों से उत्तेजित होकर ही द्रुत गति से बोलता है । इसके विपरीत वह दुःख, निराशा आदि से साहस खोकर विलम्बित गति में शब्द प्रयोग करता है । इस सन्दर्भ में द्विसन्धान के उपर्युक्त पद्य से यह मन्तव्य स्पष्ट हो जाता है, जिसमें दीन-दरिद्र व्यक्ति सुग्रीव का आश्रय प्राप्त कर प्रसन्नता से अधीर हो जाते हैं, अतएव सर्वलघु १. द्विस.,१०६
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy