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________________ १९६ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य चेतना के एक साथ होने पर समुच्चय अलङ्कार होता है । खलकपोत' न्याय से अभिप्राय है-जिस प्रकार खलिहान में कबूतर के आ जाने पर बहुत से कबूतर स्वत: आ पहुँचते हैं, उसी प्रकार इस अलङ्कार में भी एक साधक के होते हुए भी अन्य अनेक साधक जुट जाते हैं । द्विसन्धान-महाकाव्य में समुच्चय अलङ्कार का विन्यास इस प्रकार हुआ है शङ्खा निनेदुः पटहाश्चुकूजुर्गजा जगर्जुस्तुरगा जिहेषुः । वीरा ववल्गुः शकटा विरेसुरासीदकूपाररवः समन्तात् ।।२ प्रस्तुत उद्धरण में 'शंखों की तारध्वनि' जो आक्रमण की साधक है के साथ-साथ पटहों का बजना, हाथियों का चिंघाड़ना रथ के पहियों की चंचाहट तथा योद्धाओं का बड़बड़ाना आदि अन्य साधक भी जुट गये हैं, अत: समुच्चयअलङ्कार है। इसी प्रकार आन्वीक्षिकी शिष्टजनाद्यतिभ्यस्त्रयीं च वार्तामधिकारकृभ्यः । वक्तु प्रयोक्तुश्च स दण्डनीतिं विदां मत: साधु विदाञ्चकार ॥२ यहाँ राजपुत्रों की शिक्षा-प्राप्ति में आत्मविद्या की शिक्षा रूपी साधक विद्यमान है, इसके साथ धर्म-अधर्म का ज्ञान प्राप्त करना, लाभ-हानि शास्त्र को पढ़ना तथा न्याय-अन्याय की विवेचक दण्डनीति को समझना आदि अन्य साधक भी जुट गये हैं, अत: समुच्चय अलङ्कार है। १८. स्वभावोक्ति स्वभावोक्ति अलङ्कार में किसी वस्तु का यथार्थ चित्रण किया जाता है। इसमें बालक आदि की चेष्टाओं का यथावत् वर्णन, पशुओं की चेष्टाओं का यथावत् चित्रण एवं प्राकृतिक दृश्य का यथातथ्य अंकन किया जाता है। इस सन्दर्भ में ध्यातव्य यह है कि सभी विषयों का अंगसहित सूक्ष्म-चित्रण होना चाहिए, साथ ही वह वर्णन चमत्कारपूर्ण भी होना चाहिए। द्विसन्धान-महाकाव्य में इसका चित्रण इस प्रकार हुआ है१. सा.द.,१०.८४-८५ २. द्विस,५.५४ ३. वही,३.२५ ४. 'स्वभावोक्तिर्दुरुहार्थस्वक्रियारूपवर्णनम् ।',सा.द.,१०.९३
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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