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________________ १४६ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना विषय रुचिकर लगते हैं तथा उनसे अतिरिक्त अरुचिकर । इन अरुचिकर विषयों को ही अपनी दृष्टि या विचार से दूर रखने की प्रेरणा देने वाला भाव घृणा अथवा जुगुप्सा कहलाता है । बीभत्स रस का वर्ण नील है । इसके देवता महाकाल हैं। इसके आलम्बन दुर्गन्धमय मांस, रक्त, मेदा या चर्बी आदि हैं । दुर्गन्धमय मांसादि में कीड़े पड़ना इसका उद्दीपन विभाव है । थूकना, मुख फेरना, नेत्र बन्द करना इसके अनुभाव हैं और मोह, अपस्मार, आवेग, व्याधि तथा मरण आदि इसके व्यभिचारी भाव हैं। बीभत्स रस शृङ्गार, करुण की भाँति आह्लादकारी न होने के कारण कवियों को विशेष प्रिय नहीं रहा है । महाकाव्यों में उसका वर्णन स्फुट रूप में ही प्राप्त होता है । कविधनञ्जयने अपने द्विसन्धान-महाकाव्य में राम-लक्ष्मण व खर-दूषण अथवा भीम-अर्जुन व कौरव-सेनाओं के मध्य होने वाले युद्ध की परिणति के वर्णन में इस रस के भयावह दृश्य का चित्रण किया है । कवि वर्णन करता है कि किस प्रकार राक्षसों की पंक्तियाँ राघव/पाण्डव राजाओं की अक्षरश: सत्य महामानवता की प्रशंसा करती हुई यथेच्छ रूप से मृत योद्धाओं का रक्त श्वेत कपालों में भरकर पी रही थीं। कवि ने यह भी वर्णन किया है कि किस प्रकार राक्षस-स्त्रियाँ अपने बच्चों को अपने फैले हुए पैरों पर बैठाकर मृत योद्धाओं की चर्बी से घोल बनाकर अपनी अंगुलि से धीरे-धीरे खिला रही थीं। इस उदाहरण में कवि ने बड़ी चतुराई से वास्तविक घृणात्मक दृश्य का चित्रण किया है निपीय रक्तं सुरपुष्पवासितं सितं कपालं परिपूर्य सूनृताम् । नृतां प्रशंसन्त्यनयोर्ननर्त्तवाननर्तवाचोर्युधि रक्षसां ततिः ।। प्रसार्य पादवधिरोप्य बालकं विधाय वक्रेऽङ्गुलिषङ्गमङ्गना। प्रवेशयामास वसां महीक्षितां प्रकल्प्य पीथं पिशिताशिनां शनैः ।।२ प्रस्तुत प्रसंग में कवि हृदय में विद्यमान जुगुप्सा स्थायी भाव है तथा पाठकगण आश्रय हैं। आलम्बन युद्ध-भूमि है, जहाँ मृत योद्धा राजा पड़े हुए हैं। श्वेत कपालों में भरकर रक्त पीती हई राक्षस पंक्तियाँ तथा अपने बच्चे को मुख में अंगुलि डालकर चर्बी का घोल पिलाती हुई राक्षस स्त्रियाँ उद्दीपन हैं ।आक्षेप से १. ना.शा, पृ.८९ तथा सा.द, ३.२३९-४१ २. द्विस,६.३७-३८
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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