SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२ सन्धान-कवि धनञ्जय की काव्य-चेतना चन्द्रोदय चन्द्र की कामोत्तेजकता कवि समाज में प्रसिद्ध ही है । सम्भोग शृङ्गार में चन्द्र सुप्त-काम को जाग्रत कर कामियों का मित्रवत् प्रिय उपकार करता है । कामदेव ऐसे ही समय में उन्हें अपने शस्त्रों का लक्ष्य बनाता है प्रतिमितविधुबिम्बसीधुपानादिव वदनं विशदारुणं वधूनाम् । श्रमजललुलितभूकोपशङ्कानतशिरस: किल कामिनश्चकार ।। इस प्रसंग में धनञ्जय कहते हैं कि चन्द्रमा की परछाईं पड़ने से निर्मल कान्तियुक्त तथा मदिरा पीने से लाल एवं थकान के पसीने से गीली-गीली भृकुटि युक्त वधुओं के झुके हुए मस्तक को देखकर कामिजनों को ऐसा प्रतीत हुआ कि वे रुष्ट तो नहीं हो गयी हैं। यहाँ रति स्थायी भाव है। प्रेमी व प्रेमिका परस्पर आलम्बन विभाव हैं । उपवन, मद्यपान, नायिका की चेष्टाएं उद्दीपन विभाव हैं । हर्ष, उन्माद, औत्सुक्य आदि व्यभिचारी भाव हैं । रोमाञ्च, स्वेद आदि सात्विक भाव हैं जिनसे सम्भोग शृङ्गार अभिव्यक्त हो रहा है। सम्भोग शृङ्गार की अभिव्यक्ति में चन्द्र अथवा चन्द्रोदय का क्या स्थान है?–इसका अनुमान एक अन्य स्थल पर चन्द्रोदय देखकर रूठी हुई प्रेमिकाओं की मन:स्थिति से लगाया जा सकता है न विधुः स्मरशस्त्रशाणबन्धः स्वयमेष स्फुरिताश्च ता न ताराः । मदनास्त्रनिशानवह्निशल्कप्रचयोऽसाविति मानभिश्चकम्पे ॥२ प्रस्तुत उद्धरण में कवि कल्पना करता है कि रूठी हुई कामिनियाँ चन्द्रोदय को देखकर काँप उठी और सोचने लगीं कि यह चन्द्रमा नहीं है अपितु कामदेव के अस्त्रों पर धार रखने के लिये शाण का चक्र है । आकाश में ये तारे नहीं खिले हैं, बल्कि मदन के अस्त्रों को (चन्द्र रूपी) शाण पर चढ़ाने से उड़े हुए अग्नि के पतंगों का समूह ही है। १. द्विस,१७.५८ २. वही,१७.४९
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy