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________________ रस-परिपाक - १३१ चपलता आदि व्यभिचारी भाव हैं । कटि-दर्शन आदि अनुभाव हैं । रोमाञ्च आदि सात्विक भाव हैं जिनसे सम्भोग शृङ्गार आस्वादित हो रहा है। सलिलक्रीडा अधिजलमधिकुङ्कुमं बभौ करधृतमङ्गनया स्तनद्वयम् । कनककलशयुग्ममम्भसि स्मरमभिषेक्तुमिवावतारितम् ॥ प्रस्तुत प्रसंग में कवि धनञ्जय सलिलक्रीडा के लिये पानी में उतरती हुई नायिकाओं का अनुपम वर्णन करते हैं। पानी में उतरती हुई नायिकाओं ने अपने-अपने स्तनों को कुङ्कम से रंगे हाथों द्वारा इस प्रकार सम्हाल लिया था कि ऐसी प्रतीति होती थी जैसे यह स्तनों की जोड़ी न होकर कामदेव के अभिषेक के लिए पानी में डुबाये गये कुङ्कम-चर्चित दो सोने के सुन्दर कलश हों । यहाँ स्थायी भाव रति है । नायिका आलम्बन विभाव है और कामदेव के उपलक्षण से उपलक्षित नायक आश्रय है । समुद्र, नदी, सलिल क्रीड़ा आदि उद्दीपन विभाव हैं । हर्ष, उन्माद, चपलता आदि व्यभिचारी भाव हैं । स्तनों को कुङ्कम चर्चित हाथों से स्पर्श करना आदि अनुभाव हैं। रोमाञ्च आदि सात्विक भाव हैं जिनसे सम्भोग शृङ्गार की अभिव्यक्ति हो रही है। द्विसन्धान-महाकाव्य का सलिलक्रीडा वर्णन पर्याप्त लम्बा है, किन्तु रसपरिपाक की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है । धनञ्जय ने एक स्थान पर सलिलक्रीडा की सुरत-लीला से तुलना की जो दर्शनीय है परिहषितमुखं कुचद्वयं दधदधरोऽपि बभूव पाण्डुताम् । श्लथितमथ विलेपनाञ्जनं निधुवनमन्वहरज्जलप्लवः ॥२ यहाँ जलक्रीडा को सुरत-लीला का अनुकरण बताया गया है । कारण यह है कि सुरत-लीला की भाँति जलक्रीडा से नायिकाओं के कुच-कलशों के मुख विकसित हो गये थे, दोनों ओंठ सफेद पड़ गये थे, शरीर पर मला गया शालिचूर्ण का लेप धुल गया था तथा आंखों का अंजन आदि भी फीका पड़ गया था। १. द्विस.१५३९ २. वही,१५.४४
SR No.022619
Book TitleDhananjay Ki Kavya Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBishanswarup Rustagi
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year2001
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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