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________________ १५४ ] [ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र कपन इच्छिज सहाय लिच्छू, पच्छाणुतावे न तवप्पभयं । एवं बियारे अमिय पयारे, अवज्जइ इन्दियचोरवरसे || १०४ ॥ तओ से जायन्ति पश्रोषणाई, निमज्जिडं मोहमहरुणवस्मि । सुहेस्णिो दुक्खविणोयड', तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ॥ १०५ ॥ विरजमाणस्स य इन्दियत्था, सद्दाइया तावइयप्पगारा । न तस्स सच्चे वि मरगुन्नथं वा, एवं संजायई समयमुवट्टियरस | अत्थेय संकपत्र तओ से, पीय कामगुणेषु तरहा ॥ १०७ ॥ स वीयरागो कय सव्व किञ्च्चो, खवेइ नाणावर खणेणं । तहेव जं दंसणमावरेइ, जं चन्तरायं पकरेइ कम्मं ॥ १०८ ॥ सव्वं तत्र जाणइ पासप य, अमोह होइ निरन्तराए । अणासवे झाणसमाहिजुत्ते, निव्वत्तयंती अमणुन्नयं वा ॥ १०६ ॥ ससंकष्पविकपणासं, उक्खए मोक्खमुद्देइ सुद्धे ॥ १०६ ॥ सो तस्स सव्वस दुस्स मुक्को, जं वाहई सययं जन्तुमेयं ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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