SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१५३ तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्ख, . निव्वत्तई जस्स करण दुक्ख ॥ १७॥ एमेव भावम्मि गओ पओसं, . उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥८॥ भावे विरत्तोमणुमो विसोगो, . एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥६॥ एविन्दियत्था य मणस्स अत्था, दुक्खस्स हेमणुयस्स रागिणो। ते चेव थोवं पि कयाइ दुक्ख, न वीयरागस्ल करेन्ति किंचि॥१००॥ न कामभोगा समयं उवेन्ति, न यावि भोगा विगई उन्ति । जे तप्पोसी य परिग्गही य, सो तेसु मोहा विगई उवेइ ॥१०१ ।। कोहं च मारवं च तहेव माय, .. . लोहं दुगुच्छं अरई रई च । हासं भयं सोगपुमिथिवेय, ___ नपुंसवेयं विविहे य भावे ॥ १०२॥ श्रावजई एवमणेगवे, --- . एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्ने य एयप्पभवे -बिसेसे. ....... कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ॥१०३॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy