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________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्र] [१५१ तत्थोवभोगे वि किलेसदुख, .. निव्वत्तइ जस्स करण दुक्ख ।। ८४॥ एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवे दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो य चिण इ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे॥५॥ फासे विरत्तो मणुप्रो विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिपपई भवमझे वि सन्तो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं॥८७॥ मणस्त भाव गहणं वयन्ति, तं रागहेंउ तु मणुन्नमाहु । तं दोसहे अमणुन्नमा हु, समोय जो तेसु स वीयरागो॥८॥ भावस्स मां गहणं वयन्ति, __ मणस्स भावं गहणं वयन्ति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, . दोलस्स हेउं अमणुन्नमाहु ।। ८८॥ भावेलु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालिय पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्ध, करेणुमगावहिए गजे वा || ८६ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, __ तसि क्खणे से उ उबेइ दुक्खं । दुहन्तदोसेण सएण जन्तू, .. न किंचि भावं अवरज्झई से ॥१०॥
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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