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________________ १५०] श्रीउत्तराध्ययनसूत्र एगन्तरत्त रुइरेमि फासे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, __ न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।।७८॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे ।। चित्तहि ते परितावेइ बाले, पीलेहि अत्तगुरू किलिटे ॥ ७९ ॥ फासावारण परिग्गहेण, उपायणे रक्खणसन्निोगे। वए विनोगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥८० ॥ फासे अतित्त य परिग्गहम्मि, सातोवसत्तो न उवेइ तुहिँ । अतुट्टिदोलेरए दुही परस्स. लोभाविले प्राययई अदत्तं ।। ८१॥ तराहाभिभूयस्त अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं वड्डइ लोभदं सा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई ले ॥२॥ मोसस्स पच्छा य पुरस्थो य. पोगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययन्तो, फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥८३॥ फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि?
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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