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________________ श्रीउत्तराध्ययन सूत्र ] 1 तराहा हया जस्स न होइ लोहो, लोहो हम्रो न स न किंचाई' ॥ ८ ॥ रागं च दोसं च तहेव मोहं, उद्धत्तका मेरा सभूलजालं । जे जे उंवाया पडिवज्जियव्वा, रसा पगामं न निसेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नगणं । दित्तं च कामासमभिद्दवन्ति, ने कित्तइस्सामि श्रहाणुपुवि ॥ ६ ॥ दुमं जहा साफलं व पक्खी ॥ १० ॥ जहा दवग्गी पउरिन्धणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेह | एविन्दियग्गी विपगामभोइणो, न बम्भयारिस्स हियाय कस्सई ॥ ११ ॥ विवित्त से जा सण जन्तियां, श्रमासणारं दमिइन्द्रियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्त, [ १३६ 'जहा विराला सहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था । एमेव इत्थी निलयस्स मज्भे, १. किंवणत्थि । ४. श्रोमासणाए । पराइयो वाहिरिवोस हेहिं ॥ १२ ॥ न बम्भयारिस्स खमो निवासो ॥ १३ ॥ २. अवाया परिवज्जियन्त्रा । ३. हु सेवि० ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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