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________________ श्री उत्तराध्ययनसूत्र] [१३३ एएसिं तु विवच्चामे, रागदोससमजियं । खवेइ उ जहा भिक्खू , तमेगग्गमणो सुण ॥ ४॥ जहा महातलायस्स, संनिरूद्ध जलागमे । उस्सिचणाए तवणाए, कमेणं सोसणा भवे ॥ ५ ॥ एवं तु संजयस्मावि, पावकम्मनिरासवे । भवकोडीसंचियं कम्तं, तवसा निजरिजइ ॥ ६ ॥ सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरब्भन्तरो तहा। बाहिरो छबिहो वुत्तो, एवमब्भन्तरो तवो ॥ ७॥ अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रसपरिचाओ। कायकिलेसो संलीणया य, बन्झो तओ होइ ।।८।। इत्तरियमरणकाला य, अणसणा दुवेहा भवे । इत्तरिया सावकंखा, निरवकंखा उ बिइजिया ॥६॥ जो सो इत्तरियतवो, सो समामेण छव्धिहो । सेदितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गो य ॥ १० ॥ तत्तो य वग्गवग्गो, पंचमो टुप्रो पइराणतो। मणइच्छियचित्तत्थो, नायव्यो होइ इत्तरिओ ॥ ११ ॥ जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया । सवियारमवियारा, कायचिटुं पई भवे ।। १२ । अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया । नीहारिमनीहारी, आहारच्छेलो दोसु वि ॥ १३ ॥ ओमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं । दव्वओ खेत्तकालेण, भावेणं पजवेहि य ॥ १४ ॥ जो जस्स उ आहारो, तत्तो ओमं तु जो करे । जहन्नणेगसित्थाई, एवं दवेण ऊ भवे ।। १५ ।। १. मोमोदरियं ।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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