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________________ १३२] (श्रीउत्तराध्ययनसूत्र अहाउयं पालइत्ता अन्तोमुहुत्तद्धावसेसाए जोगनिरोह करेमाणे सुहुम किरियं अप्पडिवाइं सुकन्झा झायमाणे तप्तढमयाए मणजोगं निरंभइ, वय जोगं निरंभइ, कायजोगं निरूंभइ प्राणपाणनिरोहं करे इ, ईसिपंचहस्सक्खरुच्चारणद्धाए यण प्रणगारे समुच्छिन्नकिरियं अनियट्टिसुकज्झारण झियायमाणे वेयणिज आउयं नाम गोत्तं च एए चत्तारि कम्मंसे जुगवं खवेइ ॥ ७२ ।।. तो ओरालियतेयकम्माइं सव्याहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहिता उज्जुसेढिपने अकुसमाणगई उड्ढं एगसमएणं अविग्गहेणं तत्थ गन्ता सागारोव उत्त सिज्झइ बुज्झइ जाव अंतं करेइ ।। ७३ ।। एस खलु सम्मत्तपरकम्मरल अज्झयणस्स अट्रे समणेणं भगवया महावीरेण अाघदिए, पन्नविए, परूविए, दंसिएनिदंसिप उवदंसिए ॥ ७४ ।। त्ति बेमि ।। ॥ सम्मत्तपरक्कमे समते ॥ २१ ॥ ॥ अह तवमगं तीसइमं अज्झयणं ।। जहा उ पावगं कम्मं, रागदोससमजिये । खवेह तवसा भिक्खू , तमेगग्गमणो सुण ॥ १।। पाणिवहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिग्गहा विरओ। राईभोयणविरओ, जीवो भवइ अण्णासवो ॥२॥ पंचस मिनो तिगुत्तो, अकसानो जिइंदिओ। अगारवो य निस्सल्लो, जीवो होइ अणासवो ॥ ३ ॥ १. सेसाउर।
SR No.022614
Book TitleDashvaikalik Tatha Uttaradhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarshchandra Maharaj
PublisherAtmaram Mohanlal Sheth
Publication Year1949
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size13 MB
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